Book Title: Arddha Kathanak
Author(s): Banarasidas
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 164
________________ ४१ सोलह सै सत्तरि समै, लेखा कियौ अचूक । न्यारे भए बनारसी, करि साझा द्वै ट्रक ॥ ३६३॥ चौपई जो पाया सो खाया सर्व । बाकी कळू न बांच्या दर्व ।। करी मसस्कति गई अकाथ । कौड़ी एक न लागी हाथ ॥३६४॥ निकसी घौंधी सागर मथा। भई हींगवालेकी कथा ।। लेखा किया रूखतल बैठि । पूंजी गई गांडिमैं पैठि ॥ ३६५॥ सो बनारसीकी गति भई । फिरि आई दरिद्रता नई ॥ बरस डेढ़ लौं नाचे भले । है खाली घरको उठि चले ॥३६६ ।। एक दिवस फिरि आए हाट । घरसों चले गलीकी वाट ॥ सहज दिष्टि कीनी जब नीच । गठरी एक परी पैथ बीच ॥३६७।। सो वनारसी लई उठाइ । अपने डेरे खोली आइ ॥ मोती आठ और किछु नांहि । देखत खुसी भए मनमांहि ॥३६८॥ ताइत एक गढ़ायौ नयौ । मोती मेले संपुट दयौ॥ बांध्यौ कटि कीनौ बहु यत्न । जनु पायौ चिंतामनि रत्न ॥३६९॥ अंतरधनु राख्यौ निज पास । पूरब चले बनारसिदास ॥ चले चले आए तिस ठांउ । खराबाद नाम जहां गांउ ॥३७॥ कल्ला साहु ससुरके धाम । संध्या आइ कियौ विश्राम ॥ रजनी बनिता पूछ बात । कहौ आगरेकी कुसलात ॥ ३७१॥ . कहै बनारसि भाया-बैन । बनिता कहै झूठ सब फैन ॥ तब बनारसी सांची कही । मेरे पास कछु नहिं सही ॥३७२॥ १ अ वाचा। २ अ थोथी । ३ अ मग । ४ अ ड नारी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184