Book Title: Arddha Kathanak
Author(s): Banarasidas
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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एहि बिधि धरि बालकको नांउ । आए पलटि जौनपुर गांउ ॥ सुख समाधिसौं बरतै बाल । संबत सोलह सै अठताल ॥ ९४ ॥ पूरब करम उदै संजोरा । बालककौं संग्रहनी रोग। उपज्यौ औषध कीनी धनी। तऊ न बिथा जाइ सिसुतनी ॥ ९५॥ बरस एक दुख देख्यौ बाल । सहज समाधि मई ततकाल ॥ बहुरों वरस एकलौं भला । पंचासै निकसी सीतला ॥ ९६ ॥
दोहरा विथा सीतला उपसमी, बालक भयौ अरोग ।
खरगसेनके घरि सुता, भई करम-संजोग ॥ ९७ आठ बरसको हओ बाल । विद्या पढ़न गयौ चटसाल ॥ गुर पांडेसौं विद्या सिखै । अक्खर बांचे लेखा लिखें ॥ ९८ बरस एक लों विद्या पढ़ी। दिन दिन अधिक अधिक मति बढ़ी। विद्या पढ़ि हुओ बितपन्न । संबत सोलह सै बावन्न ।। ९९
दोहरा खरगसेन बनिज रतन. हीरा मानिक लाल ! इस अंतर नौ बरसकौ, भयौ बनारसि बाल ॥ १०० खैराबाद नगर बसै, तांबी परवत नाम । तासु पुत्र कल्यानमल, एक सुता तसं धाम ।। १०१ ॥ तासु पुरोहित आइओ, लीने नाऊँ साथ । पत्र लिखत कल्यानको, दियौ सेनके हाथ ॥ १०२ ॥ करी सगाई पुत्रकी, कीनौ तिलक लिलाट ।
बरस दोइ उपरांत लिखि, लगन ब्याहको ठाट ॥ १०३॥ १ अ उपजी । २ अ लई । ३ ब तसु । ४ स ई नापित ।
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