________________
दोहरा आपु आपुकौं सब भगे, एकहि एक न साथ । कोऊ काहूकी सरन, कोऊ कहूं अनाथ ॥ १६१ ॥
चौपई
खरगसेन आए तिस ठांउ । दुलह साहु गए जिस गांउ ॥ लछिमनपुरा गांउके पास । तहां चौधरी लछिमनदास ॥ १६२ ॥ तिन लै राखे जंगलमांहि । कीनौं कौल बोल दै बांहि ॥ इहि विधि बीते दिवस छ सात। सुनी जौनपुरकी कुसलात ।। १६३॥ साहि सलेम गोमती तीर । आयौ तब पठयौ इक मीर ॥ लालाबेग मीरको नांउ । वकील आयौ तिस ठांउ ॥ १६४ ॥ नरम गरम कहि ठाढौ भयो । नूरमकौं लिबाइ लै गयौ । जाइ साहिके डारौ पाइ । निरभै कियौ गुनह बकसाइ॥ १६५ ॥ जब यह बात सुनी इस भांति । तब सबके मन वरती सांति ॥ फिरि आए निज निज घर लोग । निरमै भए गयौ भय-रोग ।।१६६।। खरगसेन अरु दूलह साह । इनह पकरी घरकी राह ।। सपरिवार आए निज धाम । लागे आप आपने काम ॥ १६७ ॥ इस अवसर बानारसि बाल । भयौ प्रवान चतुर्दस साल ।। पंडित देवदत्तके पास । किछु विद्या तिन करी अभ्यास ।। १६८।। पट्टी नाममाला' से दोइ । और — अनेकारथ ' अवलोइ ॥ जोतिस अलंकार लघु कोक । खंड स्फुट से च्यारि सिलोक ॥१६९।।
१ अ नांउको बास । २ अ सुनौ जौन रकी यह बात। ३ अ सलीम। ४ अ अपने अपने ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org