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८ शिवमन्दिर (कल्याणमन्दिर )-यह कुमुदचन्द्रके संस्कृत स्तोत्रका भावानुवाद चौपई छन्दमें किया गया है, जो बहुत सुगम और सुन्दर है । इसका बहुत प्रचार है ।
९ साधुबन्दना-२८ मूलगुणोंका २८ चौपई और ४ दोहोंमें वर्णन हैं जिससे स्पष्ट होता है कि कवि सवस्त्र भट्टारकों या यतियोंके प्रति श्रद्धालु नहीं हैं ।
१० मोक्षपैड़ी - यह रचना खरताल लेकर गानेवाले साधुओं के ढंगकी है जिसमें कुछ पंजाबी विभक्तियोंका उपयोग हुआ है। -
इक्कसमै रुचिबंतनो गुरु अवखै सुन मल्ल । जो तुझ अंदर चेतना, वहै तुमाड़ी अल्ल ॥ १ ए जिनवचन सुहावने, सुन चतुरं छयल्ला । अक्खै रोचक सिक्खन, गुरु दीनदयल्ला ॥ इस बुज्झै बुधि लहलहै, नहिं रहै मयल्ला । इसदा भरम न जानई, सो दुपद बयल्ला ।। २ यह सतगुरदी देसना, कर आस्रवदी बाड़ि।
लद्धी पैड़ी मोक्खदी, करम कपाट उघाड़ि ॥ २३ - ११ करम-छत्तीसी--३६ दोहोंमें जीव और अजीवका वर्णन बड़ी मार्मिकतासे किया गया है और बतलाया है कि अजीव पुद्गलकी पर्याय ही कर्म है और जीव उनसे जुदा है । इनके भेदको समझना चाहिए । पुद्गलके संसर्गसे जीवकी कैसी दशाएँ होती हैं
पुदगलकी संगति करै, पुदगल ही सौं प्रीत । पुदगलकौं आपा गनै, यहै भरमकी रीत ॥ १७ जे जे पुदगलकी दसा, ते निज मानै हंस । याही भरम विभावसौं, बढ़े करमको बंस ।। १८ ज्या ज्यों करम विपाकबस, ठानै भ्रमकी मौज । त्यौं त्यों निज संपति दुरै, जुरै परिग्रह फोन !! १० ज्यों बानर मदिरा पिए, बीछीडंकित गात । भूत लगै कौतुक करे, त्यौं भ्रमको उतपात ।। २०
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