Book Title: Arddha Kathanak
Author(s): Banarasidas
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 121
________________ ४ बाबा शीतलदास नामक संन्यासीको बारबार नाम पूछकर चिढ़ाना और और उन्हें ज्वालाप्रसाद कहना । ५ दो दिगम्बर मुनियोंको बारबार उँगली दिखाकर अशान्त करना और इस तरह उनकी परीक्षा करना। ६ गोस्वामी तुलसीदासका अपने शिष्यों के साथ आगरे आना, कविवरसे मिलकर अपना रामचरितमानस (रामायण) भेट करना और इसके बाद बनारसीदासका विराजै रामायण घटमाहिं' आदि पद रचकर सुनाना । ७ देहावसानके समय कण्ठ अवरुद्ध हो जानेपर कविवरका 'चले बनारसीदास फेर नहिं आवना' आदि लिखकर लोगों के इस भ्रमको निवारण करना कि उनका मन मायामें अटक रहा है। इस तरहकी अनेक किंवदन्तियाँ थोड़ेसे हेरफेरके साथ अन्य सन्त महात्माओंके सम्बन्ध भी लिखी और सुनी गई हैं परन्तु चूँकि बनारसीदासजीने अपनी अत्मकथामें इनका कोई उल्लेख तो क्या संकेत भी नहीं किया है। उल्लेख न करनेका कोई कारण भी. नहीं मालूम होता, इसलिए इनके सच होनेमें बहुत सन्देह है । पहले खयाल था कि आत्मकथा लिखने के बाद वे बहुत समय तक जीवित रहे होंगे और इसलिए ये घटनाएँ उसके बाद घटित हुई होंगी। परन्तु अब तो यह निश्चय हो चुका है कि वे उसके बाद लगभग दो वर्ष ही जिये हैं और इस थोड़ेसे समयमें इन सातों घटनाओंको मान लेनेमें संकोच होता है । - यदि गोस्वामी तुलसीदाससे साक्षात् होनेकी बात सच होती तो उसका उल्लेख अर्घकथानको अवश्य होता । क्योंकि तुलसीदासका देहोत्सर्ग वि० सं० १६८० में हुआ था और अर्धकथानक १६९८ में लिखा गया है। इसी तरह जहाँगीरकी मृत्यु भी १६८४ में हो चुकी थी । 'ग्यानी पातशाह 'वाला कवित्त नाटकसमयसार ( चतुर्दश गुणस्थानाधिकार पद्य ११५ ) में है और यह ग्रन्थ १६९३ में पूर्ण हुआ था। कुछ समय पहले जयपुरके स्व० पं० हरिनारायण शर्मा बी० ए० ने सन्त सुन्दरदासजीकी तमाम रचनाओं का 'सुन्दर-ग्रन्थावली' नामक बहुत ही सुसम्पादित संग्रह दो जिल्दोंमें प्रकाशित किया था। उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिकामें एक जगह लिखा है कि "प्रसिद्ध जैनकवि बनारसीदासजीके साथ सुन्दरदासजीकी मैत्री थी। सुन्दरदासजी जब आगरे गये तब बनारसीदासजी सुन्दरदातजीकी योग्यता, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184