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________________ १८ ra - कथानककी इन व्याकरणसंबंधी विशेषताओंको सम्मुख रखकर अब हम देखें कि उसकी भाषा ब्रजभाषा कही जाय, या अवधी या कुछ और। ब्रजभाषाकी विशेषतायें ये हैं ' 8 १ संज्ञा तथा विशेषणोंमें 'ओ' या औ' अन्तवाले रूप, जैसे बड़ो, छोटो, कारो, पीरो, घोड़ो । २ संज्ञाका विकृतरूप बहुवचन 'न' प्रत्ययके रूपान्तर लगाकर बनाना, बैसे, राजन. घोड़न, हाथिन, असवारन आदि । ३ परसगों में कर्म-सम्प्रदानमें 'कौ', करण - अपादानमें 'सों', 'तें', और संबंध में 'कौ', ' को ' | " ४ सर्वनामोंमें उत्तम पुरुष मूलरूप एकवचन ' हौ' विकृतरूप ' यो सम्प्रदान कारकके वैकल्पिक रूप 'मोहिं ' आदि, संबंधके ओकारान्त ' मेरो', " हमारो ' आदि । ५ क्रियाके रूपों में ' है ' लगाकर भविष्य निश्चयार्थ बनाना, जैसे, चलि है; तथा सहायक क्रियाके भूत निश्चयार्थके हो, हतौ आदि रूप । इन लक्षणोंको जब हम अर्ध-कथानक में ढूँढ़ते हैं तो विशेषणों में 'औ' अन्तवाले रूप कहीं कहीं दृष्टिगोचर हो बाते हैं --- जैसे आयौ मुगल उतावला, सुनि मूलाकौ काल । मुहर छाप घर खालसै, कीनौ लोनौ माल ॥ २२ ॥ तथा कारक - रचनाकी विशेषतायें भी बहुत कुछ मिलती हैं । किन्तु शेष लक्षण नहीं मिलते, इससे अर्ध-कथानककी भाषाको पूर्णतः ब्रजभाषा नहीं कह सकते । raath विशेष लक्षण निम्न प्रकार ह १ संज्ञामें प्रायः तीन रूप, हस्व, दीर्घ तथा तृतीय, जैसे घोड़, बोड़वा, घोड़उना । २ विकृतरूप बहुवचनका चिह्न 'न' ब्रजके समान जैसे ' कर्ममें ' का ' संबंध में 'केर ' अधिकरणमें 'मा' | १ देखो, व्रजभाषा व्याकरण, १९३७, पृ० १५-१६ । Jain Education International घरन' किन्तु डा० धीरेन्द्र वर्माकृत, अलाहाबाद, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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