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अपादान कारको 'सु' 'सौं' प्रत्यय पाया जाता है । जैसे, 'तबसु करै उद्दमकी दौर, तिस दिनसौं बानारसी नित्त सराहै मित्त (४८४)।
सम्बन्ध कारकमें बहुवचनमें 'के', स्त्रीलिंगमें 'की' और एकवचनमें 'का'' को' प्रत्यय पाये जाते हैं। जैसे-बनारसीके, जिनदासके, जेठूके, वृत्तिके, पासकी. तीसिसैकी, उद्दमकी, रामकी, वस्त्रका काम, मुगलको, हिमाऊंको, साहुको पत्र ( ४२५५) आदि । __ अधिकरण कारकके प्रत्यय 'मैं' और 'माहि' पाये जाते हैं । जैसे---- मनमैं, जगतमैं, रोहतगमैं, जौनपुरमैं, गंगमाहि, मनमांहि, चीठीमांहि आदि । ___ सर्वनामोंमें, तिन, (४१), ताको (४१), तिसकी (६), तिनके (१२), तिस (२१), जिन (३.), जाकी (१२), मैं ( ३८४), हम ( ४४२), मेरे (७), सो (३, ४३), यहु ( १७, ३६ ), ए (२५), तू (४८३),, तुमहिं ( ४२) आदि रूप दृष्टिगोचर होते हैं ।
क्रियाके वर्तमानकालिक उत्तम पुरुषके रूप--- बंदी (१), कहौं ( ५, ६, ११), भाखौं (७)।
वर्तमान अन्य पुरुषके रूप-बनारसी चिंतै मनमांहि ( ४८७ ), बहुवचन-दोऊ साझी करहिं इलाज (४८७ )।
मध्यम पुरुषके रूप --तू जानहि (४८३)।
भूतकालिक अन्य पुरुषके रूप-कीनौ, भयो, भए, (४८७ ), आयो, बसायौ. कही, दिए, दीन, पढ़यो, खरचे, आदि (४८७)। सहायक क्रिया सहित --- बखानी है, पानी है, जानी है, आदि । भविष्यत् कालके रूप----होइगी (६), माँगहिगा (४८१), चलहिगा (४८१)।
आज्ञार्थक क्रियाके रूप --'उ' या 'हु' लगाकर बनाये गये हैं। जैसे, 'कथा सुनु' (३८) सोच न करु (४४), सुनहु ।
पूर्वकालिक अव्यय सर्वत्र क्रियामें 'इ' लगाकर बनाये गये हैं---सुनि, धरि, मानि, जानि, बखानि, बोलि, निकसि, पढ़ि, रोइ, गाइ, पहिराइ आदि ।
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