________________
१६
मृषा ( ३७ ), नौकृत ( २६४ ) और कहीं कहीं उसकी जगह अन्य स्वरादेश पाया जाता है जैसे दिष्टि ( १२९ ) ।
८
व्यंजनोंमें "श" के स्थानपर प्रायः सर्वत्र 'स' आदेश पाया जाता है, जैसे पास ( पार्श्व ), बंस ( वंश ), हुसियार ( होशियार ), कबीसुर ( कवीश्वर ), आवस्तिक ( आवश्यक ) ( ३४७ ), सुद्ध ( शुद्ध ) ( १७७ )। ' अनेक जगह पाया जाता है, जैसे मृषा ( ३७ ), पुरुष, दिष्टि ( १२९ ), हरषित ( ३५७), विषाद (३५८), दुष्ट (४८०), भेष (४८०) आदि । किन्तु कहीं कहीं उसके स्थानपर भी 'स' का आदेश देखा जाता है जैसे बरस ( वर्ष ) (१८१), बिसेस ( विशेष ) १७९ ।
संस्कृतके संयुक्त वर्णोंको स्वरभक्ति या वर्णलोपके द्वारा सरल बनानेकी प्रवृत्ति देखी जाती है, जैसे - जनम ( जन्म ), पदारथ ( पदार्थ ), पारस ( पार्श्व ), परिगह ( परिग्रह ), बितीत ( व्यतीत ) |
संज्ञाओंके कर्त्तावाचक और कर्मवाचक रूपके लिए, कोई विकृति या प्रत्यय नहीं पाया जाता जैसे --
ग्यानी जाने तिसकी कथा ( ६ ), बसै नगर रोहतगपुर (८), मुलदास भी कीन काल ( २० ), मुगल गयौ थौ ( २१ ), आयौ मुगल उतावलो ( २२ ), घनमल काल कियो तिस ठौर ( १८ ) आदि ।
पर जहाँ सकर्मक क्रिया संस्कृत के भूतकालिक कृदन्त परसे बनी है वहाँ कर्त्ता कारकमें 'नै' भी पाया जाता है, जैसे खरगसैनक रायनें दिए परगने च्यारि (५५) ।
करण कारकमें सौं या सूं प्रत्यय पाया जाता है । जैसे- सुखसौं बरस दोइ चलि गए (१८), एक पुत्रसौं सब किछु होइ ( ४३ ), लेना देना विधिसौं लिखे (४७), निज मातासौं मन्त्र करि (५२), दुहू मिलाइ दामस भरी (६८) । सम्प्रदान कारकमें कहीं ' सौं' और कहीं ' कौ' व 'कूं' प्रत्यय पाया जाता है । जैसे-- मूलदाससौं बहुत कृपाल (१६), कहै मदन पुत्रीस रोइ (४३), पिता पुत्रक आई मीच (२०), खरगसैनको रायनै दिए परगने च्यारि (५५), तब चटसाल पढ़नकूं गयौ ( ४६ ) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org