Book Title: Apbhramsa Hindi Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 10
________________ उसकी रचना-प्रक्रिया एवं व्याकरण का ज्ञान आवश्यक है। अपभ्रंश भाषा को सीखने-समझने को ध्यान में रखकर ही 'अपभ्रंश रचना सौरभ', 'अपभ्रंश अभ्यास सौरभ', 'अपभ्रंश काव्य सौरभ', 'प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ', 'अपभ्रंश-व्याकरण' 'अपभ्रंश अभ्यास उत्तर पुस्तक' 'अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद-अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक' आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण' इसी क्रम का प्रकाशन है। 'अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण' अपभ्रंश भाषा को सीखने-समझने की दिशा में प्रथम व अनूठा प्रयास है। इसका प्रस्तुतिकरण अत्यन्त सहज, सरल, सुबोध एवं नवीन शैली में किया गया है जो विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा। इस पुस्तक में अपभ्रंश के संज्ञा-सर्वनाम विभक्तियों, क्रिया-रूपों, कृदन्तों, स्वार्थिक प्रत्ययों, प्रेरणार्थक प्रत्ययों, अव्ययों आदि को हिन्दी भाषा में सरलता से समझाने का प्रयास किया गया है। यह पुस्तक विश्वविद्यालयों के हिन्दी, संस्कृत, इतिहास, राजस्थानी आदि विभागों के अध्ययनार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसी आशा है। यहाँ यह जानना आवश्यक है कि संस्कृत-ज्ञान के अभाव में भी अध्ययनार्थी 'अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण' के माध्यम से अपभ्रंश भाषा का समुचित ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे। श्रीमती शकुन्तला जैन एम.फिल. (संस्कृत) ने बड़े परिश्रम से 'अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण' को तैयार किया है जिससे अध्ययनार्थी अपभ्रंश भाषा को सीखने में अनवरत उत्साह बनाये रख सकेंगे। अतः वे हमारी बधाई की पात्र हैं। (vii) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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