Book Title: Anuyogdwar Churni
Author(s): Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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श्री अनुयोग चूण
।। १५ ।।
गोआगमतो तं तिविहं जाणयसरीरादि, जाणयभव्वसरीरा दव्वसुता कंख्या, वहरितं इमं - तालिम दिपत्तलिहितं, ते चैव तालि - मादि पत्ता पोत्थकता तेसु लिहितं चत्थे वा लिहितं, अहवा सुतं पंचविहं- अंडयादि, अंडाज्जातं अंडजं, तं च हंसगन्धं, अंडमिति कोसिकारको हंसगन्भो भण्णति, हंसो पक्खी सो त पतंगो तस्स गन्भो, एवं चडयसृत्तं हंसगब्भं भण्णति, लोगे यप्पतीतं, चडयूसुत्तं पतंगतो तं भन्नति, अन्ने य पंचिदियहंसगन्भजं भगंति, कीडयं पंचविहं ' पट्ट ' इत्यादि, जंमि विसएस पट्टो उप्पज्जति तत्थ अरने वणणिगुंजट्ठाणे मंसं चीडं वा आमिसं पुंजेसु टविज्जइ, तेसिं पुंजाण पासओ णिण्णुण्णता संतरा बहवे खीलया भूमीए उद्धा णिहोडिज्जति, तत्थ वर्णतरातो पदंगकीडा आगच्छति, तं तं मंसचीडाइयं आमिसं चरंता इतो ततो कीलंतरेसु संचरंता लाल मुयंति एस पट्टो, एस य मलयविसयवज्जेसु भणितो, एवं मलयविसयुपण्णो मलयपट्टो भण्णति, एवं चैव चीणविसयबहिमुप्पण्णो अंसुपट्टो चीणविसयुप्पण्णो चीर्णसुयपट्टो, एवं एतेसिं खेत्तविसेसतो कीटविसेसा कीटविसेसतो य पट्टविसेसो भवति, एवं मणुयादिरुहिरं घेत्तुं किणावि जोगेण जुत्तं भायणसंमि तविज्जति, तत्थ किमी उप्पज्जंति, ते वाताभिलासिणो छिद्दनिग्गता इतो ततो य आसण्णं भमंति, तेसि णीहारलाला किमिरागपट्टो भण्णति, सो सपरिणामं रंगरंगितो चैव भवति, अण्णे भणति - जहा रुहिरे उप्पन्ना किमितो तत्थेव मलेत्ता कोस उत्तारेता तत्थ रसे किंपि जोगं पक्खिवित्ता वत्थं रयंति सो किमिरागो भण्णति अणुग्गाली, वालयं पंचविधं ' उट्टिगे' त्यादि, उष्णोट्टिता पसिद्धा, मिरहिंतो लहुतरा मृगाकृतयो बृहत्पिच्छा तेसि लोमा मियलोमा, कुतवो उंडुररोमेसु, एतेसिं चेव उष्णतादीणं अवघडो किसिमहवा एतेसिं दुगादिसंजोगजं किट्टिसं, अहवा जे अण्णे सागा (छगणा) दयो रोमा ते सच्चे किट्टिसं भन्नति । 'से किं तं भावसुते' त्यादि (३८-३५) आगमोवउत्तस्स
भावा
वश्यकं
द्रव्यश्रुतं च
।। १५ ।।
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