Book Title: Anuyogdwar Churni
Author(s): Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
View full book text ________________
श्री अनुयोग चूर्णी
वश्यक
॥१४॥
तदेव चित्तं द्रव्यलेश्योपरंजितं लेश्या, एते परिणामवसा वर्तमानभिण्णकाला भवंति, क्रियया करोमीति प्रारंभकाले, मनसाऽध्यव- भावासितं, तदेवोत्तरकालं संतानक्रियाप्रवृत्तस्य प्रवर्द्धमानश्रद्धस्य तीब्राध्यवसितं, प्रतिसूत्रं प्रत्यर्थ प्रतिक्रियं वाऽर्थेऽस्य साकारोपयोगोपयुक्तो तदहोवयुत्ते, तस्साहणे जाणि सरीररजोहरणादियाणि दयाणि ताणि किरियाकरणतणतो अप्पियाणि प्रतिसमयावलिकादि- द्रव्यश्रुतं च | कालविभाग प्रतिसूत्रार्थ प्रतिक्रिय प्रतिसंध्यं संताणतो तब्भावणाभावितो भवति, एवं अणन्नमणस्स उपयोगोवयुत्तस्स भावाबस्सतं भवति, एत्थ पसत्थेण लोउत्तरभावावस्सएर्ण अधिकारी, तस्स य अभिण्णत्था पज्जायवयणा असंमोहणत्थं भणिता, ते य णाणावंजणा णाणावंजणत्तणतो चेव णाणाविहघोसा भवंति, ते य इये 'आवस्सगं' गाहा (*२-३०) आवस्सगं अवस्सकरणिज्जं जं तमावासं, अहवा गुणाणमावासत्तणतो, असा आ मज्जायाए वासं करेइत्ति आवासं, अहवा जम्हा तं अवासयं जीवं आवासं करेति दंसणणाणचरणगुणाण तम्हा ते आवासं, अहवा तकरणातो णाणादिया गुणा आवासितित्ति आवासं, अहवा आर | मज्जायाते पसत्थभावणातो आवासं, अहवा आ मज्जाए वस आच्छादने पसत्थगुणेहिं अप्पाणं छादेतीति आवासं, अहवा सुण्णमप्पाणं तं पसत्थभावेहिं आवासेतीति आवासं, कम्ममट्टविहं कसाया इंदिया वा धुवा इमेण जम्हा तेसिं णिग्गहो कज्जइ तम्हा धुवणिग्गहो, अवस्सं वाणिग्गहो, कम्ममलिणो आता विसोहिज्जतीति विसोही, सामादिकादि गण्यमानानि षडध्ययनानि, समृहः वग्गो, णायो युक्तः अभिप्रेतार्थसिद्धिः आराधणा मोक्खस्स सवपसत्थभावाण वा, लद्धीण पंथी मागे इत्यर्थः, 'समणेण' गाहा। (*३-३१) एसा अहोणिसत्ति दिणरयणीमज्झे, आवस्सगेत्ति गतं ॥ 'से किं तं सुते' त्यादि (२९-३१) तं चतुर्विधं णामादि, नामठवणा कंठया, दब्बसुतं आगमओ णोआगमतो य, जं आगमतो तं अणुवयोगतो सुतमुच्चारयंतस्स जं तं,
SHARESUts
Loading... Page Navigation 1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 222