Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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कन्हइयालाल तरीके ओळखावेल छे. तेमनी पाछळ, त्रीजा के जमणा विभागमां बेठेला बे जणनां नाम 'चुनीलाल', 'हिरालाल' एवां लख्यां छे. साधु उपरनुं लखाण 'साधु मुनिराज बखान रायप्रसेनी का करइ छइ' ए प्रमाणे वंचाय छे. ज्यारे तेमनी पाछळना, डाबा अथवा पहेला विभागमां एक गृहस्थ बेठेला देखाय छे, तेनो परिचय : 'गंगादास सहोदरने लिखी ' एम वंचाय छे. उपाश्रयनी बन्ने तरफ बतावेलां वृक्षो, उपाश्रय कोई वाडी (बगीचा ) वाळा स्थानमां होवानुं सूचवे छे.
आवरण पृष्ठ २ अने ३ : आ आगमसूत्रमां 'सूर्याभ' नामे एक देवनी वात विशेषे आवे छे. ते पूर्वावस्थामां राजा हतो, अने मरीने देव थतां भगवान महावीरनी भक्ति माटे पोतानी समग्र ऋद्धि साथे ते 'आमलकल्पा' मां भगवान छे त्यां आवे छे. त्यां समवसरेला भगवान सामे ते पोतानी देवशक्तिथी ३२ नाटको निर्मे छे, अने नाट्यनृत्य - वाद्य - गीत वगेरे द्वारा भगवाननी भक्ति करे छे. ते देवविमानमा परिवार साथे आवे त्यारे एक विमान दिव्य शक्तिथी बनावी तेमां बेसीने आवे. ते विमाननुं निर्माण (Construction) देवो द्वारा केवी रीते थाय तेनो चितार आवरण २ मां आपेल चित्र आपे छे. आम तो देवशक्तिथी पलकारामां ज बधुं थाय, परन्तु चित्रकारे देवो द्वारा थतुं विमाननुं बांधकाम दर्शावीने पोतानी सर्जनात्मक कल्पनाने एक नवो ज आयाम आप्यो छे. चित्रना मथाळे - 'विमान बनाय रहे है देवता' एम लखेलुं छे ते आ कल्पनाने पुष्टि आपनारुं छे. चित्र ३ मां निर्माण पामेलुं समग्र विमान जोई शकाय छे. मध्यमां 'सूर्याभ' देव, आगळ-पाछळ तेनो परिवार, नीचे द्वाररक्षको, सौथी मोखरे वार्जित्रकारो, पहेले के सौथी उपरना मजले एक सुन्दर देवयुगल, तेमनी सामे विमानगत देवभवन तेमज कल्पवृक्षो - खचित उद्यान. बधुं ज जाणे एकमेकनुं पूरक बनीने अनिवार्य अंगरूप बनतुं अनुभवाय ! मथाळे लखायुं छे : 'सोधर्म देवलोक के मधमधमें थइ विमाने बेठा सपरिवार गाजाबाजा गाजत हुवा जाय छै."
आ प्रति अद्यावधि अजाणी छे. अमारा साधु, सरलस्वभावी, पंन्यास श्रीचन्द्रकीर्तिविजयजी गणिए तथा तेमना पिता - गुरु स्व. मुनि श्रीदर्शनविजयजीए ते प्रतिने घणी संभाळपूर्वक साचवी छे. तेमना सौजन्यथी तेनां चित्रो अनु. ७५-१ / २मां पहेलीवार प्रगट थाय छे.
चित्रोनी शैली राजस्थाननी छे. चित्रोमा घणी विलक्षणताओ जोवा मळे छे. सूर्याभ देव अने तेनां नाटको विषेनां चित्रो कदाच भाग्ये ज अन्यत्र क्यांय होय ! ए रीते जोईए तो आ प्रति बहु विशिष्ट ज गणवी पडे. तेनां सघळां चित्रोनो सम्पुट प्रगट थाय तो कलानी दुनियाने एक नवो ज खजानो लाधे.
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