Book Title: Anusandhan 2016 09 SrNo 70
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-७०
समरमोदितपः; क्रिया गुप्ता, तत्कर्षणपक्षे तु तपः सुरविस्मयविधायि अततततान - विस्तारयामासेति भावः ॥११।।
विनयवामनवासवसन्तते !, विनयवामनराऽनुपलक्षित ! । विनय ! वामनमारभवं भयं, विनयवामनगाऽमरपायुध ! ॥१२॥
अवचूरिः- हे विनयवामनवासवसन्तते ! - विनयेन वामना- खर्वा, वासवानामिन्द्राणां, सन्ततिः- संहतिर्यस्य स तथा, तस्याऽऽमन्त्रणं - हे विनयवामनवासवसन्तते !, वर.....म्र(?) विनयविनम्रामरेन्द्रवृन्देत्यर्थः; हे विनयवामनरानुपलक्षित ! विशिष्टो नयः- न्यायः - सदाचारो विनयस्तस्य वामा:- प्रतिकूला विनयवामा:- सदाचारप्रतिपक्षिण इत्यर्थः, एवंविधा ये नरास्तैरनुपलक्षितः- अनादिकालप्ररूढप्रौढमिथ्यात्व [ ] परमयोग[ ]वाहभवनः; हे विनयवामनगामरपायुध ! - वि- विविधा, नयास्त्वेकदेशपरिच्छेदरूपा वचनमा[[] यस्मिन् स विनयः- स्याद्वादस्तं [वाचयती]ति डे - विनयवा- स्याद्वादवा[ ]गवद्वक्ता इत्यर्थः, तेषां मा[ ]स्त एव नगाः पर्वतास्तेषाममरपायुधः - अमरपा- इन्द्रस्तस्याऽऽयुधं वज्रं - विनयवामनगामरपायुधस्तस्याऽऽमन्त्रणम्, भयं कथम्भूतं ? - वामनमारभवं- वा[मयति - प्र]तिकूलं करोतीति णिजि वामः, [कर्तरि] अने वामनः- प्रतिकूलकारी, मार:- कन्दर्पस्तस्माज्जातं वामनमारभवं, विनयअपनय - स्फेटयेत्यर्थः ॥१२॥
हृदय मोदितदेवनरावली-हृदय मोदित ! देव ! सदा सताम् । हृदयवज्जनसंस्तुत ! मोहभी-हृदयवज्जनयाऽऽश्रितमण्डलम् ॥१३॥
अवचूरिः- हे देव !, हे मोदितदेवनरावलीहृदय !- मोदितसुरमनुज[श्रेणि] स्वान्त !, हे मोदित !- मया-परमया श्रिया, उदितो- महाभ्युदयं प्राप्तो मोदितस्तस्याऽऽमन्त्रणम्; सदा सतां- सज्जनानां हृत्- हृदयं कर्मतापन्नं, अय- [गच्छ], सतां हृदये निवासं विरचयेत्यर्थः; तथा हे हृदयवज्जनसंस्तुत ![दया] लुलोकस्तुत !; हे मोहभीहृद्- मोहभयापहारिन् !, आश्रितमण्डलं

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