Book Title: Anusandhan 2016 09 SrNo 70
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 132
________________ जुलाई-२०१६ १२५ सम्भवित नही हैं । तो उन क्रियाओं की कारक चीज को हम 'असत्' कैसे समझे ? । ___और भी बहुत सारे तर्क असत्ख्याति के विरुद्ध हो सकते हैं । शून्यवाद के खण्डन में की गई तमाम दलीलें यहाँ भी लागू होती हैं, यतः शून्यवाद और असत्ख्याति एक ही तत्त्व के दो पहेलू हैं । सौत्रान्तिकों का मन्तव्य भी इस बारे में माध्यमिकों से मिलता-झुलता ही है। २. योगाचार सम्मत आत्मख्याति विज्ञानवादी बौद्धों के मत से समूचे विश्व में एक ही तत्त्व परिस्फुरायमान है और वह है विज्ञान । उससे अतिरिक्त किसी बाह्य तत्त्व का अस्तित्व ही नहीं है। वह स्वयंप्रकाश है और ग्राह्य-ग्राहक भाव से रहित है । उस आन्तरतत्त्व स्वरूप विज्ञान के विविध आकार ही बाह्य पदार्थ के रूप में प्रतिभासित होते हैं । अत एव सविषयक ज्ञानमात्र भ्रान्त हैं, क्यों कि वे बाह्यरूप से आरोपित अन्तस्तत्त्व का साक्षात्कार करते हैं । चूँकि अनादि वासना के उद्बोधन से ही प्रतिभासों में वैचित्र्य सम्भवित है, अतः प्रतिभासभेद की सङ्गति के लिए भी बाह्य पदार्थों की सत्ता का स्वीकार आवश्यक नहीं । योगाचार की उक्त दृष्टि से देखा जाय तो सिर्फ शुक्ति में रजत का ज्ञान नहि, अपितु सभी बाह्यार्थविषयक ज्ञान परमार्थतः भ्रान्त ही होते हैं । वस्तुतः उन बाह्यार्थविषयक ज्ञानों में ज्ञान के अपने ही आकारों का बोध होता है, अतः वहाँ 'आत्मख्याति' (-स्वयं का बोध) गिनी जाती है । प्रश्न यह होता है कि विज्ञानवाद में भ्रान्ताभ्रान्त-विवेक कैसे होगा ? यदि सभी ऐन्द्रियक ज्ञान परमार्थतः भ्रान्त ही होंगे, तो शुक्ति में चाहे शुक्ति का ज्ञान हो चाहे रजत का ज्ञान हो, होंगे तो दोनों ही भ्रान्त ! फिर प्रमाअप्रमा की व्यवस्था कैसे बन पाएगी ? बाह्यरूप से आरोपित होने से भ्रान्त ज्ञानाकारों में सच-झूठ का विभागीकरण कैसे हो सकता है ? ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170