Book Title: Anusandhan 2016 09 SrNo 70
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 73
________________ अनुसन्धान-७० रासमांथी उपाध्याय श्रीकल्याणविजयजी विषे केटलीक अतिहासिक हकीकतो पण सांपडे छे : ६ जन्म - सं. १६०१, आसो वदि-५, लालपुर; दीक्षा - सं. १६१६, वैशाख वदि-३, महेसाणा; उपाध्यायपद - सं. १६२४, फागण वदि-७, पाटण. __ पलखडी नामना गाममां आजड संघवी रहेता हता. तेमना पुत्र झींपु संघवी थया. झींपुना बे पुत्रो - १. राजसी, २. मांईउ. राजसीओ घरे घरे मोदकना थाळनी ल्हाणी करी हती. राजसीना पुत्र थिरपाल संघवी थया. ते वखतना गूर्जरपति महमूदशाहे थिरपालने बोलावीने तेना पर प्रसन्न थई लालपुर गाम बक्षीस कर्यु. तेथी थिरपाल त्यां जईने वस्यो अने सं. १५६०मां त्यां जिनालय बंधावी तपगच्छपति श्रीहेमविमलसरिजीना हाथे अमां प्रतिष्ठा, करावी. थिरपाले जीवनमां अनेक सुकृतो सेव्यां, जेमां ९५ सत्रागार-दानशाळाओनो पण समावेश थाय छे. श्रीहेमविमलसूरिजीने विनन्ती करीने मोटा उत्सवपूर्वक श्रीआनन्दविमलसूरिजीने आचार्यपदवी पण तेमणे ज अपावी हती. थिरपालने ६ पुत्रो हता : १. पोटा, २. लाला, ३. खीमा, ४. भीमा, ५. करमण, ६. धरमण. तेमां भीमाने ५ पुत्रो थया - १. हीरा, २. हरखा, ३. थिरपाल, ४. श्रीपाल, ५. तेजक. तेमां हरखाओ महेसाणा नगरना चंपक श्रेष्ठिनी पुत्री पूंजी साथे लग्न कर्यां. तेमनुं सन्तान अटले ठाकरसी - उपाध्याय श्रीकल्याणविजयजी. ___ठाकरसीना जन्म पूर्वे माता पूंजीने मुखमां प्रवेश करता सिंह- तेमज मोतीओथी वधावता इन्द्रनुं स्वप्न आव्युं हतुं अने अमारिघोषणा जेवा उत्तम दोहला थया हता, जे हरखा संघवीओ पूर्ण कर्या हता. ठाकरसीनो दीक्षामहोत्सव मोसाळमां (महेसाणा) थयो हतो. तेमना मामा सोमदत्ते खूब उत्साहथी भाणेजने दीक्षा अपावी हती. ॐ उपाध्याय श्रीकल्याणविजयजीनां रासमां वर्णित जीवनकार्यो - १. पाटणमां प्रतिष्ठा, २. मूंडासईनगरमां ब्राह्मणो साथे वादमा विजय, ३. वागडमां प्रतिष्ठा, ४. उज्जैनीना राय सोनपाल द्वारा दीक्षानी याचना, उपाध्याय द्वारा ज्ञानबळ वडे तेमनुं आयुष्य जाणीने तेमने दीक्षा अने ते साथे ज अनशन- प्रदान, नव दिवसमां सोनपाल रायनो समाधिपूर्वक स्वर्गवास, ५. मांडवगढथी वडवाण-बावनगजानो भाईजी-सिंघजी तथा तेजपाल गांधीओ काढेलो सङ्घ, ६. भानु शेठनो खांनदेशना बहनिपुरथी अन्तरिक्षजीनो सङ्घ, ७. पैठणपुरमा मठवासी संन्यासीओ साथे वादमां विजय, ८. जगद्गुरुना आदेशथी क्रमशः उज्जैन, मांडवगढ, बर्हानपुर अने

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