Book Title: Anekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 283
________________ अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 43 बम्हुत्तर हेट्ठवरिं रज्जु घणा तिण्णि होंति पत्तेक्कं। लंतव कप्पम्मि दुगं रज्जु घणो सुक्क कप्पम्मि।। अर्थात् ब्रह्मोत्तर स्वर्ग के नीचे और ऊपर का क्षेत्र समान माप वाला है। यह स्वर्गका केन्द्र बिन्दु है। यहाँ पर एक भवातारी लौकान्तिक देव निवास करते हैं। इस प्रकार गह का या मंदिर का केन्द्र बिन्द जिसमें किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं करते तथा गृह के मध्य में पौधे आदि लगवा देते हैं जिससे किसी के पैर उस पर न पड़े तथा मंदिर के मध्य में वेदिका आदि बनवा कर उसकी अविनय होने से बचाते हैं। निष्कर्ष - वर्तमान युग में जनमानस में निमित्त की प्रबलता अधिक प्रगाढ़ होती जा रही है।लोगों का कर्म सिद्धान्त से विश्वास उठताजा रहा है।वह निमित्त की क्रियाओं जैसे वास्तु विधान, ज्योतिष, क्रियाकर्म आदि क्रियाओं को अधिक महत्त्व दे रहा है। जबकि स्वयं के भाग्य पर विश्वास ही नहीं करता। यदि मानव भाग्य पर विश्वास कर पुरुषार्थ करता है तो जीवन में अधिक सफल होता है। हमें चाहिए कि उचित समय व सम्यक् स्थान का चयन करके शुभोपयोग पूर्वक निर्माण कराकर पुण्यार्जन करें। संदर्भ सूची: १. राजवार्तिक अध्याय-९, सूत्र-२५, वार्तिक-३,पृष्ठ ६२४ २. बृहद्रव्य संग्रह, पृष्ठ-१०१ ३. वस निवासे, नामक परस्मैपदी धातु, पाणिनि व्याकरण के अनुसार, प्रथम भ्वादि ___ गण, सिद्धान्त कौमुदी सूत्र १०७४ ४. तिलोयपणात्ति, १/२६८ ५. वत्थुविज्जा, मंदिर शिल्प, पृष्ठ-१२५ ६. तिलोयपण्णत्ति, २/४/१८९४, १८९५, १९०१/५२६, ५२७ ७. वत्थुविज्जा, मंदिर शिल्प, पृष्ठ-१०८ ८. त्रिलोकसार गाथा-९७८ ९. बृहद्दव्य संग्रह, पृष्ठ-१२४ १०. त्रिलोकसार, २१४, २१५, २१६ ११. वही, २५३-२५५ १२. वही, ५०२, ५०३ १३. वही, ६३९

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