Book Title: Anekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 323
________________ अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 कर उसे पाने का प्रयत्न ही सम्यक् जीवन शैली का परिचायक हो सकता है। जीवन क्या है, कैसे उसे जिया जाना है, यह बताना ही शिक्षा का मुख्य प्रयोजन है।अतः शिक्षा विधि ऐसी होनी चाहिए, जो जीवन के यथार्थ और आदर्श का समन्वय करते हुए व्यक्ति को उसके जीवन लक्ष्य की प्राप्ति आगे बढ़ने में सहायक हो सके। ___ जीवन का एक लक्ष्य दुःखों से मुक्ति है, किन्तु दुःख विविध प्रकार के हैं, वे देहिक भी हैं और मानसिक भी हैं। देहिक दुःखों का निराकरण सम्यक् ढंग से जीवन जीने के द्वारा संभव हो सकता है, किन्तु मानसिक दुःखों से मुक्ति के लिए एक सम्यक् शिक्षण पद्धति आवश्यक होती है। शिक्षा का लक्ष्य मात्र जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति तक सीमित नहीं है, यह सही है कि जीवन जीने के लिए जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति करना होती है। जैन दर्शन की मान्यता है कि आहार, निद्रा, भय और मैथुन की प्रवृत्ति सामान्य रूप से सभी प्राणियों में पाई जाती है, किन्तु मनुष्य मात्र वासनाओं का पिण्ड नहीं है, उसमें विवेक का तत्त्व भी है।अतः वह यह विचार कर सकता है कि उसे क्या खाना है,कब खाना है और कैसे खाना है? जो उसके शरीर, स्वास्थ्य और मनोभाव का सम्यक् बनाए रख सकें। यह सत्य है कि जीवन में आहार आवश्यक है, किन्तु आहार कैसा हो, कब खाया जाए और कितनी मात्रा में खाया जाए, यह सब निर्णय तो मनुष्य को करना होता है। इसी प्रकार जीवन की अन्य आवश्यकताएँ जैसे निद्रा, भय की स्थिति में सुरक्षा के प्रयत्न,कामवासना की संतुष्टि आदि भी जीवन-जीने की विधा से अनिवार्य रूप से जुड़े हैं, फिर भी उनकी एक विवेकशील पद्धति हो सकती है। उसे ही हम जीवन- प्रबन्धन के नाम से जाना जाता है।प्रबन्धन मात्र एक व्यवस्था नहीं है, अपितुवह आदर्शोन्मुख एक जीवन शैली है। इन आदर्शों का बोध शिक्षा के माध्यम से ही सम्भव है। अतःसम्यक्जीवन-प्रबन्धन के लिए सम्यशिक्षा व्यवस्था का होना आवश्यक है। शिक्षा मात्र यथार्थ की जानकारी नहीं है, अपितु वह यह भी बताती है कि जीवन का आदर्श क्या है, और उसे कैसे जिया जाता है। __ प्राणीय जीवन का प्रारंभ भी काल विशेष में होता है, और उसका अन्त भी किसी काल विशेष में होता है। जिन्हें हम जन्म और मृत्यु के नाम से जानते

Loading...

Page Navigation
1 ... 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336