Book Title: Anekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 326
________________ ור 86 अनेकान्त 66/4 अक्टूबर-दिसम्बर 2013 है। अतः जीवन में मानसिक प्रबन्धन भी जीवन प्रबन्धन का एक महत्वपूर्ण आधार है। ऊपर हमने जीवन प्रबन्धन के जो उपाय बताये उन सब का सम्बन्ध मूलतः व्यक्ति के वैयक्तिक जीवन से है, किन्तु कुछ समाजगत तथ्य भी है, जो हमारे जीवन प्रबन्धन में साधक या बाधक होते हैं। इनमें वाणी प्रबन्धन, पर्यावरण प्रबन्धन, अर्थ प्रबन्धन, समाज और धार्मिक व्यवहार प्रबन्धन प्रमुख है। यह सत्य है कि ये तथ्य हमारे परिवेश से जुड़े हुए हैं, और समाज के अन्य घटकों से हमारे सम्बन्ध को बनाते हैं। संसार में जितने भी प्राणी है, उन सब में मनुष्य की यह विशेषता है कि उसे अपनी अभिव्यक्ति के लिए भाषा या वाणी भी मिली हुई है। वाणी का सम्यक् नियोजन न होने पर भी जीवन में अनेक विसंगतियाँ आ जाती है। वाणी एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है। किन्तु यह अभिव्यक्ति कहाँ, कब और कैसे हो, इसका सम्यक् रूप से ध्यान रखना आवश्यक होता है। जहाँ अपनी वाणी के माध्यम से हम अपने जीवन में समाज में मधुर संबन्धों का स्थापन कर सकते हैं, वही वाणी ही एक ऐसा माध्यम है, जो हमारे जीवन को स्वर्ग या नरक बना सकती है। व्यक्ति के जीवन में अभिव्यक्ति आवश्यक होती है। यह अभिव्यक्ति हम शरीर और वाणी के माध्यम से ही प्रस्तुत करते हैं, किन्तु कहाँ, कब और किन परिस्थितियों में किस प्रकार से अभिव्यक्ति करना, यह बोध होना आवश्यक है, एक गलत अभियक्ति जहां व्यक्ति और समाज में भी विसंवाद उत्पन्न कर देती है, वहीं एक सम्यक् अभिव्यक्ति जीवन में सुसंवाद उत्पन्न कर जीवन को सरस बना देती है। व्यक्ति का परिवार और समाज से जुड़ना और टूटना दोनों ही उसकी अभिव्यक्ति पर निर्भर करते हैं । अतः जीवन वाणी का अथवा अभिव्यक्ति का सम्यक् प्रस्तुतीकरण कैसे हो, इसका प्रशिक्षण भी आवश्यक है। जीवन प्रबन्धन के अन्तर्गत हमें यह जानना होगा कि वाणी का प्रयोग अपनी दैहिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग हम कैसे, कब, कहाँ करें ताकि जीवन में समरसता बनी रहे । यहाँ विशेष रूप से समझने योग्य तथ्य यह है कि अभिव्यक्ति के सम्यक् प्रस्तुतीकरण IL

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