Book Title: Anekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 327
________________ 81 अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 के माध्यम से ही व्यक्ति जीवन में सुसंवाद और समरसता को प्राप्त कर सकता है।वाणी और अभिव्यक्ति के दुरूपयोग के क्या परिणाम होते हैं इसे हम महाभारत से सम्यक् प्रकार से जान सकते हैं। अतः जीवन प्रबन्धन में वाणी का सम्यक् प्रबन्धन भी आवश्यक है। __ आज मनुष्य के लिए पर्यावरण प्रबन्धन की भी एक महती आवश्यकता है, क्योंकि प्रदषित पर्यावरण से न केवल मनुष्य जीवन को खतरा है, अपित उसके साथ सम्पूर्ण प्राणीय सृष्टि का प्रश्न भी जुड़ा हुआ है। यदि जल और वायु प्रदूषित हो जाते हैं तो सम्पूर्ण प्राणीय जीवन ही समाप्त हो जावेगा।न केवल इतना ही, अपितु वनस्पति जगत् ही समाप्त हो जावेगा और वनस्पति जगत के अभाव में प्राणीय जगत भी जीवित नहीं रहेगा और प्राणी जगत के अभाव में जगत की जड़ वस्तुएँ चाहे रहे उनके उपयोगकर्ता के अभाव में उनका कोई मूल्यही नहींरह जावेगा।इस प्रकार पर्यावरण प्रबन्धनका तत्त्व भी जीवन प्रबन्धन के साथ जुड़ा हुआ है। ___ चाहे जीवन-प्रबन्धन शब्द आधुनिक लगता हो, किन्तु वह तो एक सम्यक् जीवनशैली का विकास है। वह हमें यही सिखाता है वैयक्तिक और सामाजिक जीवन कैसे जीना चाहिए? वह हमारे यथार्थ जीवन को एक आदर्शजीवन बनाने की एक कला है। वस्तुतः व्यक्ति एकाकी प्राणी नहीं है। मनुष्य की एक परिभाषा उसे सामाजिक प्राणी के रूप में भी देखती है (Manisasocial animal)।यदि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तो उसे समाज में कैसे जीवन जीना है? यह भी जानना होगा।साथ ही उसे समाज में पारस्परिक व्यवहार का सम्यक् तरीका भी सीखना होगा।इसे ही जैन दर्शन में सम्यक्चारित्र के रूप में जाना जाता है।समाज एक वृहद् इकाई है, यद्यपि उस इकाई के केन्द्र में मनुष्य है, किन्तु दूसरी ओर एक सभ्य मनुष्य समाज की ही देन है। उसने पारस्परिक व्यवहार का ढंग या दूसरे शब्दों में समाज में जीवन जीने का ढंग समाज से सीखा है।व्यक्ति और समाज एक दूसरे पर आधारित है, वे परस्पर सापेक्ष है। व्यक्ति के बिना समाज और समाज के बिना व्यक्ति का कोई अर्थ नहीं है। सामाजिक जीवन शैली मानव

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