Book Title: Anekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 298
________________ ור अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 जिन गुरु को भी नव निर्मित वास्तु में प्रवेश का अधिकार होना चाहिए, होता ही है। यहाँ ध्यान रहे कि गृह चैत्यालय के अभाव में घर में जिनेन्द्र देव (अरहन्त मूर्ति) की स्थापना कदापि नहीं करना चाहिए। उनके स्थान पर नियम से उच्च स्थान पर जिनवाणी की स्थापना करना चाहिए ताकि यदि वास्तु संबन्धी कोई दोष रह भी गया है तो वह जिनवाणी के कारण अपना प्रभाव नहीं दिखा पायेगा । 58 जिन गुरु दो ही स्थितियों में गृहस्थ के घर प्रवेश करते हैं - १. आहार के निमित्त, २. किसी के द्वारा सल्लेखना व्रत लेने पर उसके सम्बोधनार्थ । अतः जब भी आचार्य,उपाध्याय या मुनि अपने घर की सीमा में आयें तब उनके लिए आहार हेतु अवश्य पड़गाहन करना चाहिए। बिना अतिथि सत्कार, गुरु को आहार (अतिथि संविभाग व्रत की संयोजना) कराये घर पवित्र नहीं होता। तथा सभी गृहवासियों को सल्लेखना की भावना बनाए रखना चाहिए। इसी तरह साधर्मी भाई-बहिनों के लिए भी अतिथि के तुल्य प्रवेश देना चाहिए। अपने कुटुम्बीजनों, नाते-रिश्तेदारों को भी घर में प्रवेश देना चाहिए। जो घर के स्वामी हैं उन सभी को भी परस्पर मिलजुल कर घर में रहना चाहिए। घर में ऐसे कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे घर का वातावरण दूषित होता हो। मद्यपान, मांस भक्षण, जुआ आदि दुष्कृत्य कभी नहीं करना चाहिए। अकुलीन एवं व्यभिचारी, व्यसनीजनों का प्रवेश सदैव वर्जित होना चाहिए। रात्रि भोजन का त्याग होना चाहिए। धार्मिक एवं पारिवारिक वातावरण निर्मित होना चाहिए। ऐसा करने पर ही वास्तु शांति तथा वास्तु में रहने वाले नर-नारियों को शांति प्राप्त होगी तथा सुख एवं समृद्धि में वृद्धि होगी। - प्रधान संपादक, “पार्श्व ज्योति (मासिक) एल- ६५, न्यू इन्दिरानगर, बुरहानपुर (म.प्र.) IL

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