Book Title: Anekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 319
________________ IL अनेकान्त 66/4 अक्टूबर-दिसम्बर 2013 में निपुणता को लिया जाये तो ज्यादा संगत है, जैसे संगीत - गुण, वैज्ञानिक, कलाकार आदि जो अपने गुणों के कारण आदर व सम्मान पाते हैं। आध्यात्मिक गुण में श्रेष्ठ अर्हन्तदेव हैं जिनके गुणों की वन्दना आचार्य उमास्वामी देव ने की है - 79 मोक्ष मार्गस्य नेतारंभेत्तारं कर्म भूभृताम् । गुणी जनों की संगति से मनुष्य महान बन जाता है और खोटी संगति से वही पतित हो जाता है। मेरी भावना का सातवां पद न्याय / नीति पर चलने की प्रेरणा देता है। व्यक्ति मुख्यतः छह बातों के कारण न्याय मार्ग से विचलित हो जाता है। १. प्रशंसा पाने से २. अपवाद के डर से ३. धन के आने या नष्ट होने के भय से ४. मृत्यु-भय से ५. दैविक, प्राकृतिक, तिर्यञ्च या मनुष्यकृत उपसर्ग से या अन्य भय ६. लोभ-लालच से । कवि की दृष्टि में न्यायनीति और धर्म, जीवन का परम श्रेयस है। अन्य भय में, सप्त भयों का निदर्शन भी किया जा सकता है, जो निम्नानुसार है। (१)इहलोक भय (२) परलोक भय (३) मरण भय (४)वेदना भय(५) अनरक्षा भय(६) अगुप्ति भय एवं(७) अकस्मात् भय (इसमें उपसर्गों को लिया जा सकता है)। मेरी भावना का आठवाँ पद यह इंगित करता है कि हमारी जीवन शैली, सम्यग्दृष्टि की जीवन शैली की भांति होनी चाहिए। अर्थात् जैसे सम्यग्दृष्टिविवेकपूर्ण और संयम सहित जीवन यापन करता है तथा किसी भी प्रकार के भय से रहित और अकम्प रहता हुआ इष्ट वियोग में एवं अनिष्ट के संयोग में सहिष्णु बना रहता है। वह सुख और दुःख में समताभावी बना रहता है। वह विचारता है कि सुख और दुःख मन के खेल हैं। पं. दौलतराम जी छहढाला में एक जगह लिखते हैं IL

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