Book Title: Anekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 304
________________ अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 का बन्ध होता है। यहाँ पर बन्ध न हो तो अवशिष्ट एक भाग के तीन भाग में से दो भाग बीतने पर और एक भाग शेष रहने पर उसके प्रथम समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त द्वितीय अपकर्ष काल में होता है और तीसरे में भी न हो तो चौथे, पांचवें, छे, सातवें, आठवें अपकर्ष में से किसी भी अपकर्ष में परभव सम्बन्धी आयु का बन्ध होता है। परन्तु फिर भी यह नियम नहीं है कि इन आठ अपकर्षों में से किसी भी अपकर्ष में आयुका बन्ध होही जाये।केवल इन अपकर्षों में आयुकर्म के बन्ध की योग्यता मात्र बताई गई है। इसलिए यदि किसी भी अपकर्ष में बन्ध न हो तो असंक्षेपाद्धा (भुज्यमान आयु का अंतिम आवली के असंख्यातवें भाग प्रमाणकाल) से पूर्व के अन्तर्मुहूर्त में अवश्य ही आयु का बन्ध होता है, यह नियम है। ___ भुज्यमान आयु के तीन भागों में से दो भाग बीतने पर अवशिष्ट एक भाग के प्रथम अन्तर्मुहूर्त प्रमाण काल को अपकर्ष कहते हैं। इस अपकर्ष काल में लेश्याओं के आठ मध्यमांशों में से जो अंश होगा उनके अनुसार आयुशो में से जो कोई अंश जिस अपकर्ष में होगा उस ही अपकर्ष में आयु का बन्ध होगा, दूसरे में नहीं। __जीवों के दो भेद हैं- एक सोपक्रमायुष्क दूसरा अनुपक्रमायुष्क। जिनका विषभक्षणादि निमित्त के द्वारा मरण संभव हो उनका सोपक्रमायुष्क कहते हैं और जो इससे रहित हैं उनको अनुपक्रमायुष्क कहते हैं।जो सोपक्रमायुष्क हैं उनके तो उक्त रीति से ही परभव सम्बन्धी आयु का बन्ध होता है। किन्तु अनुपक्रमायुष्कों में कुछ भेद हैं,वह यह है कि अनुपक्रमायुष्कों में जो देव और नारकी हैं वे अपनी आयु के अंतिम छह माह शेष रहने पर आयु के बन्ध करने के योग्य होते हैं। इसमें भी छह महीना के आठ अपकर्ष काल में ही आयु का बन्ध करते हैं, दूसरे काल में नहीं।जो भोगभूमि के मनुष्य या तिर्यंच हैं, उसकी आयुका प्रमाण एककोटिपूर्ववर्ष और एक समय से लेकर तीन पल्योपम पर्यन्त है।इनमें से वे अपनी-अपनी यथायोग्य आयु के अन्तिम नौ महीना शेष रहने पर उन्हीं नौ महीना के आठ अपकर्षो में से किसी भी अपकर्ष में आयु का बन्ध करते हैं। इस प्रकार ये लेश्याओं के आठ अंश आयु बन्ध के कारण है।

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