Book Title: Anekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 4
________________ अनेकान्त-रस-लहरी [बहुत दिनोंसे मेरा विचार अनेकान्त-रस-लहरी' नामकी एक लेखधारा अनेकान्तमें प्रारम्भ करनेका था, जिसके द्वारा अनेकान्त-जैसे गंभीर विषयको ऐसे मनोरंजक ढंगसे सरल शब्दोंमें समझाया जाय जिससे बच्चे तक भी उसके मर्म को श्रासानी से समझ सकें, वह कठिन दुर्बोध एवं नीरस विषय न रहकर सुगम सुग्यबोध तथा रसीला विषय बन जायबातकी बान में समझा जासके-और जनसाधारण सहजहीमें उसका रसास्वादन करते हुए उसे हृदयंगम करने, अपनाने और उसके आधारपर नत्वज्ञान में प्रगति करने, प्राप्त ज्ञानमें समीचीनता लाने, विरोधको मटाने तथा लोक-व्यवहारमें सुधार करने के साथ-साथ अनेकान्तको जीवनका प्रधान अंग बनाकर सुख-शान्तिका अनुभव करने में समर्थ होसकें। परन्तु अनवकाशसे लगातार घिरा रहने और अपनी कुछ अयोग्यता के कारण मैं अब तक इसका प्रारम्भ नहीं कर सका-दो एक बिद्वानोंसे भी इस प्रकारका सरल और सरस साहित्य तय्यार करनेके लिए निवेदन किया गया परन्तु उन्होंने प्रार्थना पर कुछ ध्यान नहीं दिया । आज भी मैं अनवकाशसे उसी तरह घिरा हुआ हूँ और मेरी अयोग्यताएँ भी बनी हुई हैं, फिर भी यह सोचकर कि और कब तक इसे टलाया जाय, अाज मैं इस लेखधाराको इस श्राशासे प्रारम्भ कर रहा हूँ कि दूसरे विद्वान इसकी उपयोगिताको महसूस करेंगे, अपना भी कुछ कर्तव्य समझेंगे और अधिक अच्छे एवं हृदयग्राही दंगसे इस रसधाराको बहाकर अनेकान्त-विषयका विपुल सरलसाहित्य प्रस्तुत करने मेरा हाथ बटाएँगे। श्राशा है साहित्यकलाकार योग्य विद्वान शीघ्र ही इस ओर अपना ध्यान आकर्षित करके दृढ संकल्पके साथ प्रकृत साहित्यके निर्माणमें तत्पर होंगे और मुझे आभारका अवसर प्रदान करेंगे। इस योजनाके अनुरूप जिन विद्वानांक लेख प्राप्त होंगे वे इस स्तम्भक नीचे उनके नाम के साथ प्रकाशित किए जायँगे । जिनके नाच किमीका भी नाम नहीं होगा--स्थान निर्देशक लिए चीरसेवामन्दिरका नाम रहेगा, उन्हें सम्पादकीय समझा जाय। -सम्पादक । [१] बडी?' विद्यार्थी कुछ असमंजसमें पका और आखिर तुरन्त ही कह उठा--'यह तो अब छोटी हो गई है।' छोटापन और बड़ापन छोटी कैसे होगई? क्या किसी ने इससे कोई टुकका एक दिन अध्यापक वीरभद्रने, अपने विद्यार्थियोंको तोका है या इसके किसी अंशको मिटाया है ?--हमने तो नया पाठ पढ़ानेके लिए, बोर्ड पर तीन इंचीकी लाइन खींच इसे बुना तक भी नहीं। अथवा तुमने इसं जो पहले बड़ी कर निद्यार्थीसे पूछा-'बतलाओ यह लाइन छोटी है या कहा था वह कहना भी तुम्हारा गलत था?' अध्यापकने बडी?' विद्यार्थीने चटसे उत्तर दिया-'यह तो छोटी है।' पूछा। इसपर अध्यापकने उस लाइनके नीचे एक इंचीकी दूसरी 'पहले जो मैंने इसे 'बहीं कहा था वह कहना मेरा बाहन बनाकर फिरसे पूछा-'अब लीक देखकर बतजामो पालत नहीं था और न उस साइनमें किसी ने कोई तुकडा कि ऊपरकी र' लाइन नं.१ तोबा है या उसके किसी अंशको मिटाया है-वह तो ज्योंकी बढी है या छोटी? विद्यार्थी देखते ही बोल उठा--यह तो त्यों अपने तीन इंचीके रूप में स्थित है। पहले मापने इसके साफ बड़ी नज़र आती है।' नीचे एक इंचीकी लाइन बनाई थी, इससे यह बदी नज़र प्र०-अभी तुमने इसे छोटी बतलाया था? माती थी। और इसी लिये मैंने इसे बड़ी कहा था, अब वि०-हाँ, बतलाया था, वह मेरी भूल थी। मापने उस एक इंचीकी लाइनको मिटाकर इसके उपर इसके बाद अध्यापकने, प्रथम लाइनके ऊपर पाँच इंची पाँच ईचीकी साइन बनादी है, इससे यह तीन इंचीकी की लाइन बनाकर और नीचे वाली एक इंचीकी लाइनको लाइन छोटी हो पदी-छोटी नजर आने लगी, और इसी मिटाकर, फिर से पूछा--'अच्छा प्रब बतलायो' नीचेकी से ममेकहमा पहा कि 'यह वोभव छोटी हो गई।' साइनमै०१ -3 ,छोटी है या विद्यार्थीने उत्तर दिया ।

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