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उस दिन -
लेखक:-श्री भगवत्' जैन
___ 'आज 'धन' ही सब-कुछ है ! भाई, भाई का क़त्ल कर देता है ! -रेज़ीमें बुराई नहीं दिखाई देती ! | इन्साफ़को बालाए-ताक रखकर मासूमोंके हकको हलाक कर दिया जाता है ! ज़िबह कर दिया जाता है ग़रीबोंकी दुनिया को ! किस लिए......? "पैसेके लिए ! धनके लिए !! मगर उस दिन यह बात नहीं | थी, कतई नहीं !!'
स्व क्ष-आकाश ! शरीर को सुखद धूप ! नगर आवश्यक प्रयोग ! हलवाहक अपनी धुनमें मस्त !
" से दूर रम्य-प्राकृतिक, पथिकोंके पद-चिन्ह उसे पता नहीं, कोई देख रहा है, या क्या है ? से बनने वाला-गैर-कानूनी मार्ग; पगडण्डी! जरूरत भी क्या ?.. ... इधर-उधर धान्य- उत्पादक,हरे-भरे तथा अंकुरित- कुछ-देर खड़ा रहा ! लालायित-दृष्टिको स्वतंत्र
खेत ! जहां तहां अनवरत परिश्रम के आदी; विश्व किए हुए ! अचल, मंत्र-मुग्ध, या रेखांकित-चित्र के अन्न-दाता–कृषक ! ... ' 'कार्य में संलग्न और की भांति !... . सरस तथा मुक्त-छन्द की तानें आलापने में व्यस्त ! . अचानक हलवाहककी दृष्टि पड़ी-नर पुगव, स-घन वृक्षों की छाया में विश्राम लेने वाले-सुन्दर, धन्यकुमार पर ! कैसा प्यारा सुहावना-मुँह !...... मधु-भाषी पशु-पक्षियों के जोड़े ! श्रवन प्रिय, मधु. सुदर्शन ! मनमें एक स्फूर्ति सी पैदा हुई, उमंग-सी स्वर से निनादित वायु-मण्डल ! ''और समीरकी पनपी ! इच्छा हुई--'कुछ बातें की जाऐं, सत्कार प्राकृतिक आनन्द-दायक झंकृति !!!... किया जाए !!....."अपरिचित है तो क्या, है तो
.महा-मानव धन्यकुमार चला जा रहा था, उसी प्रभावशाली ?...... पगडण्डी पर ! प्रकृतिकी रूप-भंगिमाको निरखता, .. विचारों का संघर्ष ! प्रसन्न और मुद्रित होता हुआ ! क्षण-प्रति-क्षण धन्यकुमारने देखा, हलवाहक प्रेम-पूर्ण-नेत्रोंसे जिज्ञासाएँ बढ़ती चलती ! हृदय चाहतो-'विश्व उसकी ओर देख रहा है ! उसकी मजबूत-भुजाएँ की समस्त ज्ञातव्यताएँ उसमें समा जाएँ! सभी शिथिलसी होती जा रही हैं ! परिश्रमसे विरक्त-सा, कला कौशल्य उससे प्रेम करने लगें!"नया स्तन ठगा-सा वह ज्यों-का-त्यों खड़ा रह गया है !...... जो ठहरा ! सुख और दुलारकी गोदमें पोषण पाने दो कदम आगे बढ़कर वह कहने लगा-मन बाला!
की अभिलाषा-'क्या यह कला मुझे सिखा __सामनेके खेतमें हल चलाया जा रहा था !... सकते हो ? ठिठककर रुक गया, देखने लगा--कृषक-कलाका फूल-से झड़े ! उसने अनुभव किया स्वर्गीय