Book Title: Anekant 1940 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 49
________________ वर्ष ३, किरण ३] पास सुनाई दिया करता है । इसी धड़कनके बम्द होनेसे या रक्तगति बन्द होने से मृत्यु हो जाती है । इसीको आज कल हार्ट फेल कहते हैं । हृदयका इस प्रकार जितना भी वर्णन मिलता है, वह सब रक्त संचालन से ही मतलब रखता है, हृदय रक्तका ही केन्द्रस्थान है । "" इसके विपरीत जैन सिद्धान्तमें मनका लक्षण निम्नप्रकार किया है – आचार्य पूज्यपादने द्रव्य मनका सामान्य लक्षण “पुद्गल विपाकिकर्मोदया पेक्षं द्रव्यमनः ( सर्वा - २ - ११ ) अर्थात पुद्गल विपाकी कर्मोदयकी अपेक्षा अथवा अंगोपांग नामानामकर्मके उदयसे द्रव्यमनकी रचना होती है। इसी विषयको आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्तीने, हृदयका स्थान बताते हुए जीवकांडमें कहा है कि हिदि होदिहु दव्यमणं वियसिय- श्रट्टच्छदारविंदं वा । गोगुदयादो मवगाणखंध दो खियमा ||४४२ || — अंगोपांग नाम कर्मके उदयसे मनोवर्गणा के स्कन्धों द्वारा हृदयस्थान में आठ पांखड़ीके कमल के आकार में द्रव्यमन उत्पन्न होता है । इस गाथा के द्वारा मनका स्थान तथा उसकी उत्पत्तिका कारण बताया गया है । आजकलके वैज्ञानिक भी मनका स्थान वक्षस्थल या हृदय बताते हैं । तथा हृदय के आकारको भी बन्द मुट्ठी के सदृश बताया करते हैं । जैनाचार्योंने मनका आकार कमलाकार बताया है । इस प्रकार प्रकट रूपसे दोनों कथनों में विरोध मालूम होता है । परन्तु विचारकर देखा जाय तो इसमें कोई विरोध की बात नहीं हैं। जैनाचार्योंने आठ पांखड़ीके कमलका दृष्टान्त दिया है, इसका यह तात्पर्य [२५१ कभी भी नहीं लिया जा सकता कि ठीक अष्टदल कमलके सदृश ही होना चाहिए। यह तो केवल ata करानेके लिए दृष्टान्तमात्र है । यदि हम मांसके बने हुए हृदयमें वैसी ही पांखुड़ी तथा रज आदि खोजने लगजावें तो हमको निराशही होना पड़ेगा । पुस्तकों में दिए हुए हृदयके चित्र देखनेसे ज्ञात होता है कि जो जैनाचार्योंने कमलका दृष्टान्त दिया है, वह बन्द मुट्ठीके दृष्टान्त से अच्छा है । इसलिए आकार के विषय में विशेष विवाद नहीं हो सकता । सैद्धान्तिक ग्रन्थों में किसी भी जैनाचार्य ने मन काकार्य रक्तसंचालन नहीं बताया । श्राचार्य पूज्यपादने गुणदोष विचारस्मरणादि व्यापारेषु इद्रियांनपेक्षत्वाच्चक्षुरादिवद् बहिरनुपलब्धेश्च अन्तर्गतं करणमिति” (सर्वा० १-१४) इस वाक्यके द्वारा मनको गुण दोष बिचार स्मरणादिमें कारण बताया है। बृहद्रव्य संग्रहमें भी " द्रव्यमनस्तदाधारेण शिक्षाला पोपदेशादि ग्राहकं” इत्यादि पद मिलते हैं । इन प्रमाणोंसे शिक्षा, उपदेश आदि मनका व्यापार सिद्ध होता है । परन्तु वैज्ञानिक इस बातको स्वीकार नहीं करते । वैज्ञानिकोंके कथनानुसार यह सब कार्य मस्तिष्कका ही है। विचारना, स्मरण करना आदि विवेक सम्बन्धी सभी कार्य मस्तिष्कसे ही होते हैं । मस्तिष्कको संवेदनका केन्द्र माना गया है । यह मस्तिष्क आठ अस्थियोंसे निर्मित कपालके भीतर होता है। इस मस्तिष्क में बहुत से अंग होते हैं । उनमें से कुछ अंगोंके द्वारा हम विचार करते हैं। उन्हींके द्वारा हमको सुख, दुख, 1 द्रवयमन

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