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अनेकान्त
[ पौष, वीर निर्वाण सं० २४६६
जरूर उद्धृत की है, बहुत सम्भव है कि आचार्य संदृष्टि भी दी है, जिससे गाथाओंमें दीगई बातोंका कुन्दकुन्दने पंचसंग्रहसे उदधृत की हो, और यह भी अच्छी तरहसे स्पष्टीकरण होजाता है, परन्तु सम्भव है कि चारित्र प्राभृतसे पचसंग्रहकारने इस ग्रन्थके कर्ता कौन हैं-उनका क्या नाम है और उठाकर रक्खी हो; परन्तु बिना किसी विशेष उनकी गुरुपरम्परा क्या है ? तथा इस ग्रन्थकी प्रमाणके अभी इस विषयमें कुछ भी नहीं कहा रचना कहाँ और कब हुई है ? आदि बातें अन्ध. जासकता है तो भी इससे इससे इतना तो ध्वनित कारमें होनेसे उनके विषयमें अभी विशेष कुछभी है कि पंचसंग्रहकी रचना कुन्दकुन्दसे पहले या नहीं कहा जोसकता है, इसके लिये ग्रंथकी प्राचीन कुछ थोड़े समय बाद ही हुई होगी। हाँ इतना प्रतियोंकी तलाश होनी चाहिये । दिगम्बर-श्वेताजरूर कहा जासकता है कि ५वीं शताब्दीसे पहले म्बर दोनों ही सम्प्रदायोंके ग्रन्थभण्डारोंमें इसके इसकी रचना हुई है, क्योंकि विक्रमकी छठी लिये अन्वेषण होने की बड़ी जरूरत है । बहुत शताब्दीके पूर्वार्धके विद्वान आचार्य देवनन्दी संभव है कि उक्त ग्रंथकी पं० आशाधरजी से (पूज्यपाद) ने अपनी सर्वार्थसिद्धिकी वृत्तिमें पहलेकी प्रतियाँ उपलब्ध हो जाय, जिनपर कर्तादि
आगमसे चक्षुइन्द्रियको अप्राप्यकारी सिद्ध की प्रशस्तिभी साथमें अंकित हो । क्योंकि पं० करते हुए पंचसंग्रहकी १६८ नम्बरकी गाथा उधृत आशाधरजीने भगवती आराधनापर · 'मूलाकी है, जिससे स्पष्ट है कि पंचसंग्रह पूज्यपादसे राधना दर्पण' नामकी जो टीका लिखी है उसके पहले बना हुआ है । वह गाथा इस प्रकार है:- ८ वें आश्वासमें "तथाचोक्तं" वाक्यके
पुढे सुणेइ सर्द अपुढे पुण पस्सदै रूपम् । साथ इस पंचसंग्रह ग्रन्थकी ६ गाथाएँ उद्धृत की फास रसंच गंध बद्धं पुढे वियाणादि ॥ . है। जो पंचसंग्रह के तीसरे अधिकारमें नं० ६० इसके सिवाय, श्वेताम्बरीय सम्प्रदायमें 'कर्म प्रकृति' के कर्ता शिवशर्मका समय विक्रमकी ५ वीं
से ६५ तक ज्यों की त्यों दर्ज हैं अतः अन्वेषण शताब्दी माना जाता है, उनका संग्रह किया हुआ
करनेपर इस ग्रन्थकी प्रस्तुत प्रतिसे भी अधिक एक 'शतक' नामका प्रकरण है उसमें बंधके कथन
प्राचीन ऐसी प्रतियोंके मिलनेकी बहुत बड़ी संभाकी प्रधानता होनेसे उसका बंधशतक नाम रूढ वना
वना है। जिनपरसे कर्तादिका परिचय प्राप्त हो होगया है। इस ग्रन्थमें पंचसंग्रहकी बहुत
सके, और प्रकृत विषयके निर्णय करनेमें विशेष गाथायें पाई जाती हैं, जिनका विशेष परिचय
सहायता मिल सके। आशा है विद्वान्गण मेरे एक दूसरे ही लेखमें देनेका विचार है अस्तु, यदि इस निवेदनपर अवश्य ध्यानदेंगे। और खोज शिवशर्मका उक्त समय ठीक है तो कहना होगाकि द्वारा ग्रन्थकी और भी प्राचीन प्रतियाँ उपलब्ध रचना विक्रम की ५ वीं शताब्दीसे पहले हुई है। होनेपर उनका विशेष परिचय प्रकट करनेकी कृपा
इस सब तुलनात्मक विवेचनपरसे स्पष्ट है कि करेंगे, अथवा मुझे उनकी सूचना देकर यह 'पंच संग्रह' उपलब्ध दिगम्बर-श्वेताम्बर कर्म . साहित्यमें बहुत प्राचीन है। इसमें डेढ़ हजारके अनुगृहात कर
वीर सेवा मन्दिर, सरसावा, करीष गाथाओंका अच्छा संकलन है। साथमें, अंक
ता०१३-१-१९४०