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अनेकान्त
[पौष, वीर-निर्वाण सं०२४६६
निर्वाण मानते थे । फिर यदि अकलंक आदि जैन advisedly, for though the Pali texts प्राचार्योंने बौद्धोंकी इस मान्यताका खंडन किया है तो have entirely for many years in public उन्होंने कौनसा अन्याय किया है ? ब्रह्मचारीजीका जो libraries, they are only now beginning यह कथन है कि "अकलंक आदि जैन प्राचार्योंने जैसा to be understood. Buddhims of Pali बौद्धधर्मका खंडन किया है वैसा बौद्ध धर्म मज्झिम- Pitakas is not only a different thing निकाय आदि प्राचीन पाली पुस्तकोंमें नहीं है" वह from Buddhism as hitherto commonly भूलसे खाली नहीं है। अपने कथनकी पुष्टिमें ब्रह्मचारी received, but is antagonistic to it." जी ने W. Rys Davids के कथन का उल्लेख अर्थात् जबसे बौद्धोंके प्राचीन साहित्यकी खोज हुई है, किया है। लेकिन W. Rys. Davids का अभि- तबसे बहुत सी बातोंपर नया प्रकाश पड़ा है। यद्यपि प्राय यह बिलकुल नहीं है कि जैन और ब्राह्मण ग्रन्थ- पाली साहित्य वर्षोंसे पब्लिक लाइबेरियोंमें मौजूद था, कारोंने बौद्धधर्मका अनुचित खंडन किया है या उन्होंने लेकिन लोगोंने उसे अभी समझना शुरु किया है बौद्ध धर्मके विषयमें जो कहा है वह भ्रमपूर्ण है । उन्हों- इत्यादि । ने 'सेक्रेड बुक्स आफ्न दि ईस्ट'में बौद्धोंके कुछ ग्रंथोंका इससे Rys. Davids का कहना यही है कि अंग्रेज़ीमें अनुवाद किया है। ये अनुवाद उन्होंने आज लोगोंकी बौद्धधर्मके विषयमें जो मिथ्या धारणायें थीं, से साठ बरस पहले यानी सन् १८८० में किये थे । इन वे अब पाली साहित्यके प्रकाशमें आने के कारण दूर की भूमिकामें W. Rys. Davids ने Gegerly होती जा रही हैं। इससे उनका आक्षेप युरोपियन तथा Burnouf आदि युरोपियन विद्वानोंकी समा. विद्वानोंपर है । जो बौद्धधर्मको ठीक ठीक न समझकर लोचना करते हुये उनकी भूलें बताई हैं। इसी सिल- उसपर टीका टिप्पणी करते हैं। इसका यह मतलब सिलेमें W. Rys. Davids ने बताया है कि जबसे कदापि नहीं कि अकलंक आदि विद्वानोंने बौद्ध धर्मका बौद्धोंका पाली साहित्य प्रकाशमें पाया है तबसे बौद्ध ग़लत खण्डन किया है। दुःख है कि ब्रह्मचारीने पूर्वाधर्मके सम्बन्धमें लोगोंको नई बातें मालूम हुई हैं और पर संबंधका ध्यान रखकर, केवल उनके एक वाक्यको लोग बौद्ध धर्मको ठीक २ समझने लगे हैं। वह उल्लेख पढ़कर अपना मत बना लिया है। निम्न प्रकारसे है:
यही बात पणिकवादके लिये भी कही जा सकती ___It is not too much to say that the है। जैन और ब्राह्मण ग्रंथकारोंने बौद्धोंके क्षणिक वादमें discovery of early Buddhism has जो कृत-प्रणाश, अकृत-कर्म-भोग, भवभंग, स्मृतिभंग placed all previous knowledge of the आदि दोष दिखाये हैं, वे कुछ निर्मूल नहीं है। क्षणिक subject in an entirely new light, and वाद बौद्ध मानते हैं। एक तरह यों कहिये कि 'क्षणिक has turned the flank, so to speak of वाद' के बिना बौद्ध धर्म टिका नहीं रह सकता। इस most of the existing literature on लिए ब्रह्मचारीजीका यह लिखना कि 'पाली प्राचीन Buddhism.I use the term "discovery" पुस्तकों में सर्व वस्तुओंको नाशवान नहीं कहा" भ्रमसे