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'अनेकान्त
[पौष, वीर-मिर्वाण सं०२४६६
होता रहेगा, उसीके धक्के मुक्केसे जैनियोंमें भी जो कुछ है कि हमारे हिन्दू भाइयोंमें जिन जिन बुरी भली बातों. परिवर्तन होगा उसको ही होने देना उचित समझते हैं। का प्रचार होगा वे सब बातें समयके प्रभावसे आगे भी निर्जीवकी तरहसे दूसरी शक्तियोंके ही प्रवाहमें बहते आहिस्ता आहिस्ता जैनियोंमें भी अाती रहेंगी; कारण रहना पसन्द करते हैं, खुद कुछ नहीं करना चाहते हैं। कि जैनियोंने इस विषयमें जैनसिद्धान्तानुसार कोई ___ अन्तमें हम इतना कह देना ज़रूरी समझते हैं कि नियम स्थिर नहीं कर रखा है, किन्तु जिस जिस आज-कल सब ही जातियोंमें परिवर्तन बड़े वेगसे होरहा प्रान्तमें हिन्दुओंका जो व्यवहार है उस ही का अनुसरण है। परिवर्तनसे खाली कोई नहीं रह सकता है। वह परि- करना अपना धर्म मान लिया है यहाँ तक कि जो बातें वर्तन बिगाड़ रूप हो या संधार रूप, यह कोई नहीं कह जैन धर्मके प्रतिकूल भी हैं उनका भी अनुकरण दृढ़ता सकता है । हाँ, इतनी बात ज़रूर है कि जो अपना के साथ किया जाता है, जैसा कि राजपतानेमें ब्याह परिवर्तन श्राप नहीं करेंगे किन्तु दूसरोंके ही प्रवाहमें शादीमें जलेबियोंका बनाना और जीमना जिमाना, बहना चाहेंगे उनका अस्तित्व कुछ नहीं रहेगा। उचित बड़ी हृदय विदारक मौतमें भी सबका नुकता जीमना तो यही है कि जो भी रूढ़ियाँ जैनधर्मके विरुद्ध हममें और जिमाना आदि । यदि जैनियोंकी यही प्रगति और
आगई हैं उनको दूर कर हम अपना सुधार जैन अनुकरणशीलता रही और अपना कोई अलग अस्तित्व सिद्धान्तानुसार करलें । यदि ऐसा नहीं करेंगे और दूसरों स्थिर न किया गया तो नहीं मालूम हिन्दू भाईयोंके के ही परिवर्तनमें परिवर्तन होना पसन्द करते रहेंगे तो प्रवाहमें बहते बहते हम अपने धर्मकी सारी विशेषताको
जैनधर्मका रहा सहा अस्तित्व भी नहीं रहेगा। खोकर कहाँसे कहाँ पहुँच जाये और किस गढ़ेमें जा___ आप यह बात देख रहे हैं कि जबसे गांधी महाराज- पड़ें। ने अछूतोंसे अछूतपन न रखनेका आन्दोलन चलाया आजकल तो ऐसा होरहा है कि प्रचलित रूढ़ियोंके है और कांग्रेसने इसका बीड़ा उठाया है, तबसे अनेक विरुद्ध अपने हिन्दू भाइयोंका अनुकरण जब कुछ थोड़े हिन्दुओंने तदनुसार ही वर्तना शुरू करदिया है और ही जैनी भाई शुरू करते हैं तब तो सेठ साहूकार और अनेक जैनी भी उनके प्रभावमें आ तदनुसार ही प्रवर्तने बिरादरीके पँच रूढ़ियोंकी दुहाई देकर उनको बहुत लग गये हैं । इस ही प्रकार अनेक हिन्दू बैरिस्टरों,वकीलों कुछ बुरा भला कहने लग जाते हैं, विद्वान लोग भी डाक्टरों, और जजों आदिने मेज़ पर रोटी खाना शुरू उनकी हाँ में हां मिलाकर धर्मचला धर्मचलाकी रट करदिया है तो अनेक अंग्रेज़ी पढ़े जैनी भी उनकी देखा लगाने लग जाते हैं । फिर जब कुछ अधिक लोग इस देखी ऐसा ही करने लग गये हैं । इस ही प्रकार बहुधा नवीन मार्गपर चलने लग जाते हैं तो लाचार होकर हिन्दुओंमें बरफ़ और सोडावाटर पीने का प्रचार देख सब ही पंच और पंडित भी चुप हो जाते हैं । पंचम जिसके बनाने में हिन्दू मुसलमान, छुत अछुत सब ही का कालमें तो ऐसा होना ही है ऐसा कहकर संतोष कर लेते हाथ लगता है, हमारे कुछ जैनी भाई भो इनको ग्रहल हैं। इस प्रकारकी गड़बड़ जैनआतिमें बहुत दिनोंसे करनेमें आनाकानी नहीं करते हैं । इसी प्रकारके अन्य होती चली आरही है, यदि कोई सुधारवादी इस विषयमै भी अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं निमसे यह स्पष्ट कुछ आवाज़ उठासा भी है और विद्वानोको इसमें योग