Book Title: Anekant 1940 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 34
________________ वास्तविक महत्ता बहुतसे लोग लक्ष्मीसे महत्ता मानते, हैं बहुतसे महान् कुटम्बसे महत्ता मानते हैं, बहुत से पुत्रसे महत्ता मानते हैं, तथा बहुतसे अधिकारसे महत्ता मानते हैं। परन्तु यह उनका मानना विवेकसे विचार करनेपर मिथ्या सिद्ध होता है ।ये लोग जिसमें महत्ता ठहराते हैं उसमें महत्ता नहीं, परन्तु लघुता है । लक्ष्मीसे संसारमें खान, पान, मान, अनुचरोंपर आज्ञा और वैभव ये सब मिलते हैं, और यह महत्ता है, ऐसा तुम मानते होगे । परन्तु इतने से इसकी महत्ता नहीं माननी चाहिये । लक्ष्मी अनेक पापोंसे पैदा होती है । यह आनेपर पीछे अभिमान बेहोशी और मूढ़ता पैदा करती है। कटम्ब समदायकी महत्ता पाने के लिये उसका पालन पोषण करना पड़ता है। उससे पाप और दुःख सहन करना पड़ता है । हमें उपाधिसे पाप करके इसका उदर भरना पड़ता है। पुत्रसे कोई शाश्वत . नाम नहीं रहता। इसके लिये भी अनेक प्रकारके पाप और उपाधि सहनी पड़ती है। तो भी इससे अपना क्या मंगल है ? अधिकारसे परतंत्रता और अमलमद आता है, और इससे जुल्म, अनीति रिश्वत और अन्याय करने पड़ते हैं, अथवा होते हैं । फिर कहो इसमें क्या महत्ता है ? केवल पाप जन्य कर्मकी। पापी कर्मसे आत्माकी नीच गति होती है। जहाँ नीच गति है वहाँ महत्ता नहीं परन्तु लघुता है। ___ आत्माकी महत्ता तो सत्य वचन, दया, क्षमा, परोपकार और समतामें है । लक्ष्मी इत्यादि तो कर्म महत्ता है। ऐसा होनेपर भी चतुर पुरुष लक्ष्मीका दान देते हैं। उत्तम विद्याशालायें स्थापित करके पर-दुःख-भंजन करते हैं । एक विवाहित स्त्रीमें ही सम्पूर्ण वृत्तिको रोककर परस्त्रीकी तरफ पुत्री भावसे देखते हैं । कुटम्बके द्वारा किसी समुदायका हित करते हैं । पुत्र होनेसे उसको संसारका भार देकर स्वयं धर्ममार्गमें प्रवेश करते हैं । अधिकारके द्वारा विचक्षणतासे आचरणकर राजा और प्रजा दोनोंका हित करके धर्म नीतिका प्रकाश करते हैं । ऐसा करनेसे बहुतसी महत्तायें प्राप्त होती हैं सही, तो भी ये महत्तायें निश्चित नहीं हैं । मरणका भय सिरपर खड़ा है, और धारणायें धरी रह जाती हैं। संसारका कुछ मोह ही ऐसा है कि जिससे किये हुये संकल्प अथवा विवेक हृदयोंमेंसे निकल जाते हैं। इससे यह हमें निःसंशय समझना चाहिये, कि सत्य वचन, दया, क्षमा, ब्रह्मचर्य और समता जैसी आत्म महत्ता और कहींपर भी नहीं है। शुद्ध पाँच महाव्रतधारी भिक्षुकने जो ऋद्धि और महत्ता प्राप्त की है, वह ब्रह्मदत्त जैसे चक्रवर्ती ने भी लक्ष्मी, कुटम्बी, पुत्र अथवा अधिकारसे नहीं प्राप्त की, ऐसी मेरी मान्यता है। -श्रीमद् राजचन्द्र -

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