Book Title: Anandghan Chovisi Author(s): Sahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta Publisher: Prakrit Bharti AcademyPage 15
________________ viii रहस्य लहौ दुग अंग ताम ए बे अंग लहौ-लाभो नाम पामौ फिरी एयी आगल तीजी गाथा मां त्रीजो पद लोकालोक अवलंबन भजिए एहवु अर्थ लिख्यु लोक ते पंचास्तिकायात्मक अलोक ते आकाशास्ति कायात्मक वा लोक ते रूपी द्रब्य अने अलोक ते अरूपी द्रव्य इम लिख्यु ते भेद सौगत मीमांसक कह्या तेमां पंचास्तिकायात्मक लोक मां स्यु भेद अलोक आकाशास्तिकायात्मक मां स्यु अभेद फिरी वा लिखने लोक अलोक नु अरूपी द्रव्य अर्थ लिख्यु ते सौगत मोमांसक मां पंचास्तिकायात्मक वा रूपी अरूपी द्रव्य एक तेज मां स्यु संभव परं लिख्या चल्या गया लिखतां लेखण अटकावणी नहीं एज रहस्य विचायु जणाय छै फिरी आगल पिण घणे ठिकाणे इमज लिख्य छै ने तमे ए टब्बा मा अर्थ अने ते टब्बा नो अर्थ जोइ नै विचारस्यो तइये प्रकट जणावस्यै एमां मैं निबुद्धिये मारी मूढ मतें लिख्यु छै परं कर्ता नो गंभीराशय कर्ता समझै" ( नमिनाथ स्त० बाला.) - 'अर्थकारै अर्थ लिखते-जिण जोणी तुझ ने जोऊ तिण जोणी जोवो राज, एक बार मुझनै जोवो, ए पदो ने दोय स्थानकै जोवौ राज मुझनै जोवो राज नो अर्थ लिख्यो तुमे जोवो हे राजन् मुझ ने जोवा नो अर्थ लिख्यौ, जो पोता ना दास भाव मुझ ने जोवो निरखो आंइ एतलो तो विचारवो हतो ए कविराज राजन् तो अर्थ भिन्न विना पुनरुक्ति दूषण दूषित पद योजना करवा थी रहयौ। तेथी भलां आई तो कांई विचायु हतं परं बेइ वार जोवो-जोवो अर्थ करी ने वेगला थई गया। फिरी "एक गुझय घटतु नथी" तिहां गुझ्य ए ठहिराव्यौ के परणवा आव्या पिण पाछा फिरो गया ए स्यानौ गुझय सर्व लोक थी प्रगट माटे फिरी कारण रूपी नो अर्थ लिख्यो प्रभुजीये पोता नो उपादान शुद्ध थावा ने ए प्रभु निमित्ते रूप भज्यो सु प्रभुए भज्यो एवो वचन राजीमती नो छै परं धकाव्ये गयो। (श्रीनेमि जिन स्त० बा०) . प्रस्तुत बालावबोध के प्रारंभ में ७ दोहे मध्य के ५ दोहे और अन्त्य प्रशस्ति के १२ दोहों में अपनी लघुता दर्शाते हुए कहा है कि बुद्धि समृद्धि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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