Book Title: Amarsenchariu Author(s): Manikkraj Pandit, Kasturchandra Jain Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 8
________________ मोजागिर 1॥ आशीर्वाद । विगत कम्पिा लो से जम को मिल करने वाला र गा मिता दे -IITE, IT कि सत्मपर अमला का आगा आने Mmएकान्तनार - निभा र पाने लगा। जगत के इस भौतिक पुर में अमन को अपना प्रकाव पैलाने में विशेष ग्राम नहीं माना होn, NE + सत्य ? कारण जीत के मा साकार अन्तर्गदकाल से चले मारे है । विगत ७...जों में एमालवार को नव भी रोका 6 कर निरया जा की आयु में स्याहार को धीरे धकेलने का प्रयास किया है ।भिशा साहित्य की पमा . पण विणा है । अन्य कुन्य कुन्य ही आ3 लेकर अपनी राही है और ami भावार्थ मल रिर में आपका आर्च कर दिया है। नों ने अपनी ममता पर एकात' में लोहालिया। पाये अपनी ओर से Gam को प्रगीत मत्सदिला सुलभ काही करता पाए । पाश्री विमला VA माना होय मी वर्ष हमारे हर एक निधि र लेकर आया है. भायिका पालादाली भाताली ने आचार्य की स्वं हमारे सामिप में एक सकल्पलिया A पूष्म Jra N ENTS, Vानी में अवसर पर आर्भ साहिता का प्रचुर प्रकारान हो और M यो मुलगा हो फलत ४५ 304 राज्यों के पनाशन का सिरा किया था, क्योकि सत्य के तेजस्वी होने पर 344 354 कार स्मत. ही पलागत २ गमा 30 गुना से मकान हेतु जिन माओ में अापकी स्वीकृति दी है एवं प्रत्या- परोक्ष रूप से जिस किसी से जी रा मदान में किसी भी पमा का सापो किया Y 5 को भारत Tीर्वाद है । पायाध भारतराज ता.११-७ १९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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