Book Title: Akbar Pratibodhak Kaun
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 9
________________ =अकबर प्रतिबोधक कोन ?== तटस्थ भाव से अध्ययन करते हुए लगा कि अगरचंदजी नाहटाजी ने 'युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि' में ऐतिहासिक सामग्रीओं का विशिष्ट अवलोकन किये बिना अपने गच्छ के मिलते उल्लेखों के आधार पर आ. श्री हीरविजयसूरिजी को गौण करके आ. श्री जिनचंद्रसूरिजी को एवं आ. श्री जिनसिंहसूरिजी को ही अकबर में विशिष्ट परिवर्तन लाने वाले के रूप में सिद्ध करने की कोशिश की है। ___ मुनिश्री पीयूषसागरजी (वर्तमान में आचार्य) ने हीरालालजी दुग्गड़ द्वारा लिखित 'मध्य एशिया और पंजाब में जैन धर्म' तथा 'जैन धर्म और जिनप्रतिमा पूजन' इन दो पुस्तकों में से कई प्रकरणों को अक्षरशः उतारकर 'सच्चाई छुपाने से सावधान' यह पुस्तक स्थानकवासी आदि को उद्देश्य कर संपादित की है। उसमें भी ‘मध्य एशिया और पंजाब में जैन धर्म में जिस जगह पर तपागच्छ के आचार्य या उनकी शासन सेवा विशेषतः आ. श्री हीरविजयसूरिजी का उल्लेख था, वह सब छोड़ दिया गया है। इस प्रकार गच्छराग के कारण सच्चाई को छुपाने या सच्चाई को अलग ढंग से पेश करना देखा गया, जिनका यथास्थान पर निर्देश एवं उनकी समालोचना भी इस लेख में दी गयी है। ___ 'अकबर प्रतिबोधक कोन ? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिये किये गये ऐतिहासिक अन्वेषण से प्राप्त नवनीत को प्राप्त कर सभी लोग सत्य का साक्षात्कार कर सकें एवं जिन-जिन आचार्यों ने जो-जो सुकृत किये उनके, उन-उन कार्यों के प्रति आदर भाव, कृतज्ञता भाव को प्राप्त करके तथा गलतफहमिओं को दूर करके, तात्त्विक गुणानुराग द्वारा गुणों की प्राप्ति द्वारा सर्वगुण संपूर्ण ऐसे मोक्षधाम को प्राप्त करें।' इसी शुभाशय से यह लेख प्रकाशित किया गया है। किसी गच्छ या किसी लेखक के प्रति पक्षपात या दुर्भाव बिना, उपलब्ध प्रमाणों के आधार से तटस्थतापूर्वक केवल सत्य को उजागर करने का यहाँ प्रयास किया गया है। अगर इस प्रयास से किसी के कोमल हृदय को थोड़ी सी भी ठेस पहुँची हो तो अन्तःकरण से क्षमायाचना करते हुए, प्राक्कथन को यहीं पर विराम दिया जाता है। जिनाज्ञा विरूद्ध कुछ भी लिखा हो तो त्रिविध - त्रिविध मिच्छा-मि-दुक्कडं। ता. क. इस लेख में कोई त्रुटि अथवा भूल लगे तो विद्वान इतिहासज्ञ सज्जनों से प्रार्थना है कि वे सूचित करें, ताकि उसका सुधारा हो सके। -- 3

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