Book Title: Akbar Pratibodhak Kaun
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 43
________________ अकबर प्रतिबोधक कोन ? आ. हीरविजयसूरिजी और महाराणा प्रताप आ. श्री हीरविजयसूरिजी ने अकबर को प्रतिबोध देकर के गुजरात की ओर प्रयाण किया था, बीच में उन्होंने वि. सं. 1643 का चातुर्मास नागोर में किया और बाद में सिरोही में चौमुख जिनप्रसाद एवं श्री अजितनाथ जिनालय में प्रभु प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करके जब मुसुदाबाद (मुसुद) पधारे थे, तब मेवाड़ में पधारने के लिए महाराणा प्रतापसिंह का विनंति पत्र आया था, वह यहाँ पर दिया जाता है। जैसे कि फरमान से पता चलता है कि अकबर बादशाह ने आ. हीरसूरिजी को बुलाया था और जैन धर्म का प्रतिबोध पाकर उसने अनेक सत्कार्य किये थे। वैसे ही जगद्गुरु हीरविजयसूरि को महाराणा प्रतापसिंह ने भी अपने राज्य में पधारने के लिए अनेक बार विनंति पत्र लिखे थे। वह भी जगद्गुरु की कृपा तथा आशीर्वाद का लाभ उठाना चाहता था । परंतु वृद्धावस्था के कारण आप का यहाँ पधारना न हो सका। महाराणा के अनेक विनंति पत्रों में से हम यहाँ एक पत्र का उल्लेख करते हैं। यह पत्र पुरानी मेवाड़ी भाषा में महाराणा ने स्वयं अपने हाथों से जगद्गुरु को लिखा था। इस पत्र से इतिहास पर अच्छा प्रकाश पड़ेगा। महाराणा प्रताप सिंह का पत्र समस्त श्री महाराज मंगसूदाना महासुभस्थाने सरब ओपमाला अक श्री हीरबजे सूरजि चरणकमलां अणे श्री बजेस्वस्त चावडरा देश सुधाने महाराजाधिराज श्री राणा प्रताप संघ जि ली. पगे लागणो वंचसी । - कटक अठारा समाचार भला है, आपरा सदा भला छाईजे। आप बड़ा है, पूजनीक है- सदा करपा राखे जीसु ससह (श्रेष्ठ) रखावेगा अप्रं आपरो पत्र अणा दनाम्हें आया नहीं सो करपा कर लेषावेगा। श्री बड़ा हजुररी वगत पदारखो हुवो जी में अठांसु पाछा पदारता पातसा अकब्र जिने जैन वादन्हें ग्रान रा प्रतिबोद दीदो। जीरो चमत्कार मोटो बताया जीव हंसा (हिंसा) छरकली (चिड़ियाँ) तथा नाम पषुरू (पक्षी) वेती सो माफ कराई जीरो मोटो उपगार कीदो, सो श्री जैनरा में* उप्रदेश गुजरात सुदा चारुदसा (चारों दिशा) म्हें धमरो बड़ो उदोतकार देखाणी जठा पछे आप से पदारणो हुवो न्हीं सो कारण कही वेगा पदारसी आगे सु पटा परवाणा करण रा दस्तुर माफक आप्रे हे जी माफक तोल मुरजादं सामो आवो सा बरतेगा श्री बड़ा हजुररी वषत धम 37

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