Book Title: Akbar Pratibodhak Kaun
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 57
________________ अकबर प्रतिबोधक कोन ? करता था, उस का त्याग कर दिया। 8. शत्रुंजय, गिरनार, तारंगा, आबू, केसरियाजी (श्री ऋषभदेवजी) ये जैनतीर्थ जो गुजरात, सौराष्ट्र और राजस्थान में हैं तथा राजगृही के पाँच पहाड़, सम्मेतशिखर (पार्श्वनाथ पहाड़) आदि । जो बिहार प्रांत के जैन तीर्थ हैं, उन सभी पहाड़ों के नीचे आसपास; सभी मंदिरों की कोठियों के आसपास तथा सभी भक्ति करने की जगहों पर जो जैन श्वेतांबर धर्म की है उनके चारों ओर कोई भी व्यक्ति किसी भी जीव को न मारे । उपर्युक्त सब पहाड़ और भी जो जैन श्वेतांबर धर्म के धर्मस्थान हमारे ताबे ( आधीन ) हैं वे सभी जैन श्वेतांबर धर्म के आचार्य श्री हीरविजयसूरि के स्वाधीन किये जाते हैं। जिससे इन धर्मस्थानों पर शांतिपूर्वक अपनी ईश्वरभक्ति किया करें। ऐसा फरमान जारी किया। 9. अकबर युद्धों में राजबंदी बनाता था उन्हें जबरदस्ती मुसलमान बना लिया करता था, उन्हें बंदीखाने से मुक्त कराया। मुसलमान न बनाने की प्रतिज्ञा दिलायी और हिन्दू-मुसलमान सब समान हैं अपने-अपने धर्म की आराधनाभक्ति करने में उन्हें कोई बाधा न पहुँचाये। ऐसे फ़रमान जारी किये। 10. सूरि सवाई आचार्य विजयसेन सूरि के उपदेश से सम्राट ने 1 ) गाय-बैल, 2) भैंस-भैंसा, 3) ऊँट, 4) बकरा - बकरी की हिंसा, 5 ) निःसंतान मृत्युवालों का धन राज्यकोष (सरकारी खजाने) में ले जाना, (6) बन्दीवानों को पकड़ना इन छः कार्यों को बंद कराया । 11. शत्रुंजयादि तीर्थों पर जो यात्रियों से जज़िया (कर) लिया जाता था वह बंद कराया। 12. भानुचंद्रोपाध्यायजी का सामान्य जनसमूह के लिए भी अकबर पर अच्छा प्रभाव था। एक बार गुजरात के सूबा अज़ीज़खाँ कोका ने जामनगर के राजा सत्रसाल को युद्ध में हराकर उसे तथा उसके साथी युद्ध करने वालों को बंदी बना कर कारावास में डाल दिया था। जब भानुचंद्रजी को इस बात का पता लगा तो उन्होंने अकबर को कहकर राजा सत्रसाल के समेत सब युद्ध बन्दियों को छुड़ा दिया था। 13. पूर्वोक्त आ. जिनसिंहसूरिजी द्वारा पढ़ाई गयी अष्टोत्तरी स्नात्र के पीछे भी की गयी शासन सेवा की सच्चाई को छुपाना एवं कुछ स्थानों पर उनके किये कार्यों का उल्लेख करना परंतु नाम या गच्छा उल्लेख नहीं करने के द्वारा सच्चाई को छुपाना भी प्रामाणिकता और तटस्थ इतिहास लेखन के अभाव को सूचित करता है। तपागच्छ का नाम एवं उनके आचार्यों की यशोगाथा किसी भी प्रकार से न आवे, इसलिए इस ग्रंथ (सच्चाई छुपाने से सावधान) में पूर्वोक्त ग्रंथ की कई बातें और कहीं-कहीं तो 1-2 फकरे या 1-2 लाईन छोड़कर पुरा पन्ना छापा है जो संक्षेप में इस प्रकार हैं 51

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