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=अकबर प्रतिबोधक कोन ?
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परिशिष्ट-2 अकबर द्वारा जैन मुनियों को पदवियाँ प्रदान श्री हीरविजयसूरिजी को जगद्गुरु की पदवी दी। श्री विजयसेनसूरिजी को सूरिसवाई की पदवी दी। श्री शांतिचंद्रजी गणि को उपाध्याय पदवी दी। श्री भानुचंदजी को उपाध्याय पदवी से अलंकृत किया। जहाँगीर ने श्री सिद्धिचंद्र को खुशफहम और जहाँगीर पसंद की पदवी दी। श्री नंदीविजयजी को खुशफ़हम की पदवी प्रदान की। श्री विजयदेवसूरिजी को जहाँगीर ने महातपा की पदवी दी। श्री जिनचंद्रसूरिजी को युगप्रधान की पदवी दी। .
श्री जिनसिंहजी को आचार्य पदवी दी। 10-11. मुनि मुणविनयजी और मुनि समयसुंदरजी को वाचनाचार्य की पदवी दी 12-13. वाचक जयसोमजी तथा मुनि रत्ननिधान को उपाध्याय पदवी दी।
इस प्रकार आचार्य हीरविजयसूरि तथा उनके शिष्य-प्रशिष्यों एवं आचार्य जिनचंद्रसूरिजी और उनके शिष्य प्रशिष्यों (इन सब श्वेतांबर मुनियों) को अकबर ने तथा उसके वंशजों ने सादर पदवियाँ प्रदान की।
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आ. हीरविजयसूरिजी को मिले 'जगद्गुरु' पद की
- ऐतिहासिक प्रमाणों से सिद्धि 'युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि' ग्रंथ के पृ 104 की टिप्पण में लिखा कि 'श्रीमान् हीरविजयसूरिजी का 'जगद्गुरु' पद उनके भक्त श्रावक-श्राविकाओं द्वारा रखा हुआ, गुरुभक्ति सूचक मात्र था, किन्तु सम्राट अकबर ने उन्हें 'जगद्गुरु' का कोई बिरुद नहीं दिया था।'
यह बात बराबर नहीं है क्योंकि - जिस तरह तपागच्छ के साहित्य में खरतरगच्छाचार्य जिनचंद्रसूरिजी की अकबर ने 'युगप्रधान' बिरुद दिया था, ऐसा देखने में नहीं आता, फिर भी खरतरगच्छ के तत्कालीन शिलालेख एवं साहित्य से उक्त घटना का स्वीकार किया जाता है। उसी तरह अकबर ने तपागच्छाचार्य हीरविजयसूरिजी को ‘जगद्गुरु' बिरुद दिया था, यह बात भले ही खरतरगच्छ के
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