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=अकबर प्रतिबोधक कोन ?= = प्रामाणिक उल्लेखों से करें सत्य का निर्णय तपागच्छ पट्टावली, हीरसौभाग्य, हीरसूरिनो रास आदि ग्रंथों में आ. हीरसूरिजी एवं उनके शिष्यों के द्वारा छः महीने एवं छः दिन की अमारि प्रवर्तन करायी जाने की बात आती है। उन ग्रंथों में उक्त अमारि प्रवर्तन के महिनों एवं दिनों के जो उल्लेख हैं, करीबन उन सभी दिनों का इस फरमान में दिये गये दिनों से मेल बैठता है।
इस प्रकार इस ऐतिहासिक फ़रमान से उक्त ग्रंथों की प्रामाणिकता भी सिद्ध होती है। इस फरमान और पीछे के फरमानों से स्पष्ट होता है कि आ. हीरसूरिजी
और उनके शिष्यों के उपदेश से ही छः महीने का अमिर प्रवर्तन, गाय, बैल, भैंस, वगैरह की रक्षा, शत्रुजय तीर्थका कर मोचन वगैरह सत्कार्य, अकबर ने किये थे।
इस प्रकार इतिहास से सिद्ध होते हुए भी 'युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरिज़ी' में पृष्ठ 113 में अपने ही गच्छ के किसी एक शिलालेख के आधार से - _1) प्रतिवर्ष में सब मिलाकर छः महीने पर्यंत अपने समस्त राज्य में जीवहिंसा निषेध,
2) शत्रुजय तीर्थ का कर मोचन, 3) सर्वत्र गौरक्षा का प्रचार।
ये कार्य जिनचंद्रसूरिजी के उपदेश से अकबर बादशाह ने किये थे' ऐसा सिद्ध करने का प्रयास किया है, जबकि आ. जिनचंद्रसूरिजी संबंधी दिये हुए ऐतिहासिक फरमानों में या कर्मचंद प्रबंध ग्रंथ जो खरतरगच्छीय जयसोम उपाध्यायजी के द्वारा रचित है, उसमें भी कहीं इन कार्यों का आ. श्री जिनचंद्रसूरिजी द्वारा किये जाने का उल्लेख नहीं है।
इन सभी फरमानों के निरीक्षण से ही पता चल जाता है कि आ. श्री हीरविजयसूरिजी का अकबर बादशाह पर कितना प्रभाव पड़ा था एवं अकबर भी उन्हें योगाभ्यास (मोक्षमार्ग की साधना) करने वालों में श्रेष्ठ मानता था।
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