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अकबर प्रतिबोधक कोन ?
जोधपुर निवासी मुन्शी देवीप्रसादजी ने इसका अनुवाद हिन्दी में इस तरह
किया है
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फ़रमान अकबर बादशाह ग़ाजी का
' सूबे मुलतान के बड़े - बड़े हाकिम, जागीरदार, करोड़ी और सब मुत्सद्दी (कर्मचारी) जान लें कि हमारी यही मानसिक इच्छा है कि सारे मनुष्यों और जीव जन्तुओं को सुख मिले, जिससे सब लोग अमन चैन में रहकर परमात्मा की आराधना में लगे रहें। इससे पहिले शुभचिंतक तपस्वी जयचन्द (जिनचंद्र ) सूरि खरतर (गच्छ) हमारी सेवा में रहता था। जब उसकी भगवद् भक्ति प्रकट हुई तब हमने उसको अपनी बड़ी बादशाही की महरवानियों में मिला लिया। उसने प्रार्थना की कि इससे पहिले हीरविजयसूरि ने सेवा में उपस्थित होने का गौरव प्राप्त किया था और हरसाल बारह दिन मांगे थे, जिन में बादशाही मुल्कों में कोई जीव मारा न जावे और कोई आदमी किसी पक्षी, मछली और उन जैसे जीवों को कष्ट न दे। उसकी प्रार्थना स्वीकार हो गई थी। अब मैं भी आशा करता हूँ कि इस सप्ताह का और वैसा ही हुक्म इस शुभचिन्तक के वास्ते हो जाय। इसलिए हमने अपनी आम दया से हुक्म फ़रमा दिया कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष को नवमी से पूर्णमासी तक साल में कोई जीव मारा न जाय और न कोई आदमी किसी जानवर को सतावे । असल बात तो यह है कि जब परमेश्वर ने आदमी के वास्ते भांति-भांति के पदार्थ उपजाये हैं तब वह कभी किसी जनावर को दुःख न दे और अपने पेट को पशुओं का मरघट न बनावे। परन्तु कुछ हेतुओं से अगले बुद्धिमानों ने वैसी तजबीज की है। इन दिनों आचार्य ‘जिनसिंह' उर्फ मानसिंह ने अर्ज कराई कि पहिले जो उपर लिखे अनुसार हुक्म हुआ था वह खो गया है इसलिये हमने उस फरमान के अनुसार नया फरमान इनायत किया है । चाहिये कि जैसा लिख दिया गया है वैसा ही इस आज्ञा का पालन किया जाय। इस विषय में बहुत बड़ी कोशिश और ताकीद समझकर इसके नियमों में उलट फेर न होने दें। ता. 31 खुरदाद इलाही । सन् 46।।
हजरत बादशाह के पास रहने वाले दौलतखाँ को हुकुम पहुंचाने से उमदा अमीर और सरकारी राय मनोहर की चौकी और ख्वाज़ा लालचंद के वाकिया (समाचार) लिखने की बारी में लिखा गया ।' *
यह फरमान लखनऊ में खरतरगच्छ के भंडार में है। इसकी नकल 'कृपारस कोश' पृ. 32 में भी छप चुकी है। मूल फरमान फारसी में है, और उपर शाही मुहर लगी हुई है।
('युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि' में से साभार उद्धृत | )
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