Book Title: Akbar Pratibodhak Kaun
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 15
________________ अकबर प्रतिबोधक कोन ? अकबर बादशाह के निकट मित्र और अकबर की धर्मसभा (इबादत खाना) के मुख्य संचालक अबुलफज़ल ने अकबर की जीवनकथा लिखी, जो आइन-इअकबरी के नाम से प्रख्यात है । उसमें लिखा है कि - अकबर ने अपनी धर्मसभा के सभ्यों को 5 विभागों में विभक्त किया था, जिसमें कुल 140 विद्वान थे । उनमें प्रथम वर्ग में 21 नाम है, जिसमें 16वाँ नाम आचार्य श्री हीरसूरिजी का है और 5 वें वर्ग में आ. विजयसेनसूरिजी और उपा. भानुचंद्र विजयजी के नाम है। ये तीनों ही साधु भगवंत थे। खरतरगच्छ के आ. श्री जिनचंद्रसूरिजी आदि के नाम उसमें नहीं हैं। अबुलफज़ल का खून जहाँगीर ने वि. सं. 1659 में कराया था, जबकि उसके मरने के 10 वर्ष पूर्व वि. सं. 1649 में आ. श्री जिनचंद्रसूरिजी अकबर को मिल चुके थे। इसी तरह जिनसिंहसूरिजी या समयसुंदर गणिजी का नाम भी आइन-इ-अकबरी में देखने में नहीं आता है। तपागच्छ इस सामान्य ऐतिहासिक उल्लेख के बाद हम घटनाक्रम एवं अन्य ऐतिहासिक निरीक्षण करेंगे। प्रतिबोधक किसे कहते हैं? सामान्यतः प्रतिबोध का अर्थ होता है नींद में से जागना तथा अकबर बादशाह, जो मोह की नींद में सोया था, उसे अहिंसा वगैरह के उपदेश देकर सर्वप्रथम जगाकर सफल रूप से अहिंसा की राह पर चलाने का कार्य करनेवाले आ. हीरविजयसूरिजी ही थे; वे ही अकबर प्रतिबोधक कहलाने चाहिए। इतिहास बताता है कि, वि. सं. 1639 में आ. हीरविजयसूरिजी फतेहपुर पधारे थे। आपके चारित्र और ज्ञान से अकबर बहुत ही प्रभावित हुआ । प्रसन्न हुए अकबर द्वारा सर्वप्रथम युद्ध में किये बंदियों को मुक्त कराया और फिर पंखियों को बंधन मुक्त कराया । वि. सं. 1640 में फतेहपुर के चातुर्मास में अकबर के पास पर्युषणा के (12 दिन) की अमारि घोषणा के फरमान निकलवाये और गुजरात में श्री सिद्धाचलजी आदि तीर्थों पर लिये जानेवाले कर और अत्यंत पीडादायक ऐसे 'जजियावेरा' कर को गुजरात में बंद करवाया । * इस प्रकार के अनेक कार्य कराने के बाद वि. सं. 1642 में गुजरात की ओर विहार करते समय, अकबर के हृदय रुपी बगीचे में अहिंसा का जो पौधा लगाया था, उसके सिंचन हेतु आ. * यद्यपि सम्राट ने अपने राज्य के 9वें वर्ष (वि. सं. 1621) में जजियाकर हटा दिया था। उस समय गुजरात उसके अधिकार में नहीं था। अतः गुजरात प्रदेश पर अधिकार के बाद, गुजरात प्रदेश तथा तीर्थों का जजियाकर आ. हीरविजयसूरि उपदेश से माफ किया था। 9

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