Book Title: Akbar Pratibodhak Kaun
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 17
________________ अकबर प्रतिबोधक कोन ? 2. आ. श्री हीरविजयसूरिजी के फतेहपुर सिकरी जाने के बाद अकबर पर जो प्रभाव पड़ा उसका विवरण, अकबर के दरबार में रहे इतिहासकार और कट्टर मुसलमान बदाउनी ने इस प्रकार दिया है : अकबर ने वर्ष में छह मास तक जीववध बन्द करने का आदेश दिया था। इस बात का उल्लेख बदाउनी ने इस प्रकार किया है -: "1 In these days 996 (Hijri), 1583 A. D.' (1640 Vikram Samwat) New Orders were given. The Killing of animals on certain days was forbiden, as on sundays, because this day is scared of the Sun, during the first 18 days of the month of Farwardin; the whole month of Abin (the month in which His Majesty was born) and several other days to please the Hindus. The order was extended over the whole. Realm and Capital punishments was inflicted on every one who acted against the command. (Badaoni P. 312) (मध्य एशिया और पंजाब में जैन धर्म - पेज - 305 ) 3. जिनचंद्रसूरिजी का अकबर के साथ मिलन का समय और उनके उपदेश द्वारा हुए सत्कार्य का वर्णन 'मध्य एशिया और पंजाब में जैन धर्म' पेज - 291 में इस प्रकार मिलता है : खरतरगच्छीय आयार्च श्री जिनचंद्रसूरि की लाहोर में सम्राट अकबर से भेंट : अकबर के दरबार में ओसवाल बच्छावत गोत्रीय श्वेतांबर जैन धर्मानुयायी कर्मचन्द्र नाम का एक मंत्री था। वह बड़ा दानवीर, शूरवीर, धर्मवीर, चारित्रवान, बुद्धिमान, कुशल राजनीतिज्ञ था। एक दिन सम्राट को कर्मचंद के मुख से श्री जिनचन्द्रसूरि की प्रशंसा सुनकर उनसे मिलने की उत्कंठा हुई। बादशाह ने अपने फ़रमान द्वारा आपको लाहौर पधारने की प्रार्थना की। फ़रमान पाते ही आप जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरिजी से 10 वर्ष बाद विक्रम संवत् 1648 ( ईस्वी सन् 1591) फाल्गुन सुदि 12 (ईद) के दिन 31 साधुओं के साथ लाहौर पहुँचे। सम्राट ने यहाँ पर आपको विक्रम संवत् 1649 फाल्गुन सुदि में 'युगप्रधान' की पदवी दी । - जिसके * तपागच्छ के प्रभावक आचार्य श्रीमान् हीरविजयसूरिजी के समागम से अकबर पर अच्छा प्रभाव पड़ा था, फल स्वरूप उसने जजियाकर वगैरह छोड़ दिया। कई दिनों तक अमारि उद्घोषणा के फरमान पत्र प्रकाशित कर अनेक जीवों को अभयदान दिया। उसके पश्चात् शांतिचंद्रजी, विजयसेनसूरिजी, भानुचंद्रजी आदि ने जैन धर्म का सबोध दिया था, इन सब बातों को जानने के लिये 'सूरीश्वर और सम्राट' आदि ग्रंथों को देखना चाहिये। (युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि के पृष्ठ - 64 की यह टिप्पणी है।) 1. इसी वर्ष अकबर ने श्री हीरविजयसूरिजी को जगद्गुरु की पदवी देकर उन्हें अपना गुरु माना था। 2. यहाँ उल्लेखित 'हिन्दु' शब्द का अर्थ 'जैन' करना चाहिए, जिसका स्पष्टीकरण पृष्ठ 7 पर कर चुके हैं। 11

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