Book Title: Akbar Pratibodhak Kaun
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 12
________________ अकबर प्रतिबोधक कोन ? धार्मिक स्वांतत्र्य की कुछ अनुभूति हुई और आर्यवर्त में अहिंसा देवी की कुछ अंश में पुनः मंगल प्रतिष्ठा हुई। अकबर के उपर जैन साधुओं के प्रभाव के विषय में कुछ ऐतिहासिक उल्लेख: अकबर के दरबार में दो मूसलमान विद्वान ऐसे थे जिनका सम्पर्क दिन-रात अकबर के साथ रहता था। 1. अबुलफ़जल तथा 2. बदाउनी । (1) अबुलफ़ज़ल अपनी 'आइने अकबरी' पुस्तक में लिखता है किं "Now, It is his intention quit it by degrees, confirming, however, a little to the spirit of the age. His Majesty abstained from meat for some time on Fridays and then on Sundays; now on the first day of every solar month, on solar and lunar eclipses, on days between two fasts, on the Mondays of the month of Rajab, on the feast day of the every solar month, during the whole month of Forwardin and during the month in which His Majesty was born, viz., the month of Aban." अर्थात - वह (बादशाह) समय की भावनाओं को कुछ हद तक ध्यान में रखते हु वर्तमान में धीरे-धीरे मांस छोड़ने का विचार रखता है। बादशाह बहुत समय तक शुक्रवारों (जुम्मा) और तत्पश्चात् रविवारों (सूर्य के वारों) में भी मांस नहीं खाता। वर्तमान में प्रत्येक सौर्य महीने की पहली तारीख (सूर्य - संक्राति), रविवार, सूर्य तथा चंद्रग्रहण के दिन, दो उपवासों के बीच के दिन, रजब महीने के सोमवारों, प्रत्येक सौर महीने के त्योहारों, सारे फ़रबरदीन महीने में तथा अपने जन्मदिन के महीने में - अर्थात् सारे आबास मास में (बादशाह) मांस भक्षण नहीं करता।” - (2) इसी की पुष्टि में अकबर दरबार का कट्टर मुसलमान बदाउनी इस प्रकार लिखता है - "At the time His majesty promulgated some of his-faugled degrees. The killing of animals on the first day of the week was strictly prohibited (P.322) because this day is secred to the Sun, also during the first eighteen days of the month of Farwardin; the whole of the month of abon (the month in which His Majesty was born); and on several other days, to please the Hindus. This order was extended over the whole realm and punishment was inflicted on every one, who acted against the 1. 2. The Ain-i-Akbari translated by H. Blochmann M. A. Vol. I P. P. 61-62. अकबर के जीवन में जैन लेखकों ने मांस त्याग के जितने दिन गिनायें हैं उसकी सत्यता इस लेख से दृढ तथा स्पष्ट हो जाती है। 6

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