Book Title: Akbar Pratibodhak Kaun
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 11
________________ ==अकबर प्रतिबोधक कोन ?=== पक्षियों की हिंसा भी बहुत व्याप्त हो गयी थी। ऐसी स्थिति लगभग 17वीं शताब्दी की शुरुआत तक चली। भारत की प्रजा को जरुरत थी एक संत की, जिसके उपदेश से राजा प्रजावत्सल, अहिंसक बन जाये। भारत की जब ऐसी दयनीय स्थिति थी, तब 14 वर्ष की उम्र में दिल्ली की राजगद्दी पर ई. सन् 1556 में अकबर का राज्याभिषेक हुआ। यद्यपि उसका राज्य उस समय दिल्ली-आग्रा एवं पंजाब के कुछ विभाग तक सीमित था, फिर भी उसने 20 साल तक घोर हिंसक युद्ध खेलकर, भारत के बहभाग पर अपना साम्राज्य जमा दिया था। अकबर ने चित्तोड़ के किल्ले को जीतने के लिए भयंकर हिंसा चलायी, जिसमें एक कुत्ते को भी बाकी नहीं रखा। वह रोज की सवा-शेर चिडियों की जीभ का नाश्ता करता। शिकार में इतना आसक्त था की उसने 10 मील के जंगल में 50,000 लोगों को एक महीने तक पशुओं को इकट्ठा करने का आदेश दिया और अंत में उन इकट्ठे किये हुए प्राणियों का 5 दिन तक विविध रीति से शिकार किया। इस ‘कमर्घ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। प्रायः ऐसा भयंकर शिकार भूतकाल में पहले कभी नहीं हुआ था। स्त्री लंपटता, शराब का व्यसन वगैरह अनेक दुर्गुण होने पर भी उसमें ‘गुणानुराग' नाम का एक महत्त्वपूर्ण गुण था। वह गुणवान व्यक्ति की कद्र करता था और अपने पर किये गये उपकारों को याद रखता था। अकबर को 20 साल की उम्र में जातिस्मरण ज्ञान हुआ था कि वह पूर्वभव में प्रयाग (इलाहाबाद) में मुकुन्द नाम का सन्यासी था।' इस घटना से उसे परलोक के हित के लिए कुछ करने की रुचि प्रगट हुई, परंतु वह राज्य के लोभ एवं अपने दुर्व्यसनों के वश होकर कुछ कर नहीं सका। ___ वह प्रजा के हित के कार्य एवं उन पर रहम दृष्टि रखने लगा, परंतु वह जनहित के कार्य मुख्यतया राज्य को स्थिर बनाने के लिए ही करता था, न कि दया की दृष्टि से। वह युद्ध में पकड़े सैनिकों को बंदी बनाकर रखता था और अपराधियों के प्रति अत्यंत क्रूर था। ऐसे क्रूर हिंसक बादशाह ने भी जैन साधुओं के सत्संग में आकर अपनी पिछली जिंदगी में कई सत्कार्य किये, जिससे प्रजा में सुख-शांति, टिप्पणी - * मुकुन्द सन्यासी ने प्रयाग (इलाहाबाद) में सम्राट बनने की इच्छा से वि. सं. 1598, द्वितीय माह वद 12, (2701-1542) को अग्निस्नान किया और वि. सं. 1599, कार्तिक वद 6 (15-10-1542) को अकबर के रूप में जन्म लिया। विशेष के लिये देखें - जैन परंपरा का इतिहास भाग-4, पृष्ठ -120।- ("An oriental biographical dictionary")

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