Book Title: Akbar Pratibodhak Kaun
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 8
________________ =अकबर प्रतिबोधक कोन?= अकबर प्रतिबोधक कैसे कह सकते हैं ?' तब आश्चर्य हुआ, क्योंकि इस घटना के पहले, जैन शासन में तो 'अकबर प्रतिबोधक' के रूप में आ. हीरविजयसूरिजी की ही प्रसिद्धि होने से, आ. जिनचंद्रसूरिजी को भी कोई अकबर प्रतिबोधक कहता है, ऐसी कल्पना भी नहीं थी। इसलिए इस विषय में जानकारी एवं आत्म-संतोष हेतु संशोधन करके तत्त्व का निर्णय कर लिया गया था। परंतु पुनः इसके बाद एक शहर में खरतरगच्छ की एक प्रभावक व्याख्यात्री साध्वीजी भगवंत ने अपने प्रवचन में कुछ इस प्रकार की ही प्ररूपणा की कि - 'अकबर को प्रतिबोध देकर अमारि प्रवर्तन कराने वाले युगप्रधान जिनचंद्रसूरिजी थे, अतः अकबर प्रतिबोधक तो वे ही कहलाते हैं। परंतु तपागच्छ के लोग तो आ. हीरविजयसूरिजी को अकबर प्रतिबोधक कहते हैं और उसका प्रचार करते हैं। इस तरह हमारे आचार्य का बिरुद अपने आचार्य के नाम लगाना उनके लिए उचित नहीं है। तपागच्छ वाले पहले से ऐसा ही करते आये हैं। वगैरह...' जब यह बात सुनने में आयी तो लगा कि यह तो सीधी, तपागच्छ के ऊपर आक्षेप की बात हुई ___एक विद्वान साध्वीजी ने यह बात बतायी थी, अतः ऐतिहासिक संशोधन के बिना, केवल तपागच्छ के ग्रंथों में किये गये आ. हीरविजयसूरिजी के गुणानुवाद या खरतरगच्छ के ग्रंथों में मिलते आ. जिनचंद्रसूरिजी के गुणानुवाद का अवलम्बन लेकर इस विषय में ठोस निर्णय पर आया नहीं जा सकता था। अतः वर्तमान में बादशाह अकबर आदि के द्वारा दिये गये फरमान एवं उसकी सभा में रहे इतिहासकारों के ऐतिहासिक उल्लेख तथा तत्कालीनं दोनों गच्छों के साहित्य आदि के अवलम्बन से अकबर प्रतिबोधक कोन ? इस प्रश्न का उत्तर पाने का विशेष प्रयास किया गया है। ___ इस विषय में खरतरगच्छ के उपलब्ध साहित्य में अगरचंदजी नाहटा द्वारा लिखित 'युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि' मुख्य ग्रंथ लगा तथा ‘सच्चाई छुपाने से सावधान' एवं 'तीर्थ स्वर्णगिरि-जालोर' ये पुस्तकें भी देखने में आई। तपागच्छ के साहित्य में 'सूरीश्वर और सम्राट', 'मध्य एशिया और पंजाब में जैन धर्म', 'हीरसौभाग्य काव्य', 'जैन परंपरानो इतिहास' 'मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति' - कु. नीना जैन, 'सम्राट अकबर और जैन धर्म' - बी. एल. कुम्भट वगैरह ग्रंथ एवं तत्कालीन ऐतिहासिक उल्लेख पत्र तथा फरमानों पर भी अध्ययन किया गया। (2)

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