Book Title: Akaal ki Rekhaein
Author(s): Pawan Jain
Publisher: Garima Creations

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Page 5
________________ अकाल की रेखाएँ / 3 दूज के चाँद की तरह भद्रबाहु भी दिनोंदिन बढ़ने लगा। कर | कुशाग्रबुद्धि भद्रबाहु ने एक दिन तो चमत्कार ही कर दिया। अरे वाह ! खेल-खेल में ही एक दो तीन... पूरी चौदह कितनी समझदारी और विवेक गोलियाँ । एक के ऊपर एक.. आश्चर्य ! यह तो महापुरुषों के लक्षण हैं। DATIKA | गिरनार पर्वत से लौटे गौवर्द्धनाचार्य सोचने लगे। अन्तिम श्रुतकेवली भी इन्हीं लक्षणों से जाना जा सकेगा। कहीं यही बालक तो.... ये तपस्वी मुझे इतनी वात्सल्यभरी दृष्टि से क्यों देख रहे हैं? ACER Suu । Minudulen)

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