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अकाल की रेखाएँ | 22 | आहारार्थ जाते समय जब भूखे दीन-दुःखी उनको घेर लेते तो...
1. अरे! इतने भिखारी..
दरवाजे बन्द करो।
इससे दुःखी होकर श्रावकों ने पुन: निवेदन किया कि ( स्वामी ! इस सङ्कट से बचने का )
जब तक सुकाल न आवे तब तक आप लोग रात
के अन्धेरे में घरों से बर्तनों में भोजन ले जाया करें, एक ही उपाय है।
~ बर्तन हम आपको दे रहे हैं।
इसे स्वीकार कर साधु बर्तन आदि रखने लगे। एक दिन एक साधु रात में यशोभद्र सेठ के यहाँ आहार लेने पहँचे। उसकी गर्भवर्ती सेठानी अन्धेरे में भ्रमित हो गयी...
अरे! राक्षस... बचाओ...बचाओ..
और भयभीत होकर उसका
गर्भपात हो गया।