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अकाल की रेखाएँ / 26
उसके बाद विशाखाचार्य उज्जैन आये । जब स्थूलभद्राचार्य ने सुना तो वे भी दर्शनार्थ आये ।
अरे ! तुमने ये कौनसा भेष बना रखा है ? ये अनुचित है ?
मैं बहुत लज्जित हूँ आचार्य ! परन्तु करते ? समय इतना खराब था कि जिसकी कल्पना भी नहीं की थी।
और पूरी घटना कह सुनायी, तब विशाखाचार्य के समझाने पर वे भी कपड़े छोड़कर मूलस्वरूप में आ गये ।
परन्तु कुछ युवा साधुओं ने ऐसा नहीं किया, उन्होंने भ्रष्ट रहकर अपना अलग मत चलाया। तब से महावीर के शासन में भेद हुआ।
हा ! हा! जिनशासन की ये दुर्दशा देखी नहीं जाती ।