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अकाल की रेखाएँ | 25
आहार के बाद जब एक क्षुल्लक अपना भूला | उन्होंने कमण्डल पेड़ पर लटका देखा। हुआ कमण्डल लेने वापस शहर में गये तो...
अरे! यहाँ तो कोई घर नहीं है? .
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परन्तु देवताओं द्वारा दिया गया आहार मुनि को लेना उचित नहीं।
तो उसने सारा समाचार आचार्यश्री से निवेदन किया।
अहा! बहुत गलती हुई, चन्द्रगुप्त शुद्ध चारित्र का धारक है, तभी तो इसके प्रताप से
देवों ने शहर की रचना की।
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अतः उसी समय पूरे संघ को बुलाकर दोषों को दूर करने के लिए प्रायश्चित किया। चन्द्रगुप्त ने भी प्रायश्चित लिया।