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अकाल की रेखाएँ | 20 दान की खबर सुनकर अन्य शहरों के लोग भी उज्जैन आने लगे, इससे भीड़ बढ़ गयी, लोग | | निर्लज्ज होकर घुमने लगे। (भागो! भागो! उधर रोटी... पानी ! पानी!
(उधर पानी!
अरे रोटी खत्म?
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ऐसे विकराल काल में एक दिन रामल्यादि मुनि आहार करके लौट रहे थे। । अरे, इसका पेट भरा है।
(पेट फाड़कर भोजन निकालो। मारो ! मारो!)
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