Book Title: Akaal ki Rekhaein
Author(s): Pawan Jain
Publisher: Garima Creations

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Page 21
________________ अकाल की रेखाएँ / 19 | इस तरह उस शहर में आहार करते हुए चन्द्रगुप्त अपने गुरु की सेवा करते रहे। एक दिन वह घड़ी भी आ गयी तो चन्द्रगुप्त उत्कृष्ट रीति से अपने गुरु की समाधि करायी । तो तुमरे जिय कौन दुःख है, मृत्यु महोत्सव भारी इधर भद्रबाहु ने शरीर छोड़ा, उधर उज्जैन सहित सम्पूर्ण उत्तर प्रान्तों में भयङ्कर अकाल पड़ने लगा। दयालु लोगों ने भरपूर दान देना शुरु किया ।

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