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अकाल की रेखाएँ | 18 | लेकिन मुनि चन्द्रगुप्त सोचने लगे -
और गुरु के पास आकर सारा समाचार कहा- । आश्चर्य! आहारदाता नहीं? ठीक ही तो / वत्स! तुमने बहुत अच्छा किया, क्योंकि है, शुद्ध भोजन भले ही हो, पर हमारे लिए । विधिपूर्वक दिया गया आहार ही लेना खाने अयोग्य है।
योग्य है।
इसी तरह दो दिन बीत जाने पर जब तीसरे दिन पुनः आहार हेतु गये तो
(आहार देने के लिए
अकेली स्त्री?
अतः आज भी आहार ग्रहण किये बिना ही लौट गये।
और पुनः आचार्य से निवेदन किया -
चौथे दिन पुनः जब आहार हेतु हे मुनि! तुमने ठीक किया। जहाँ गये तो वनदेवी ने शहर बसा दिया। अकेली स्त्री आहार दे, वहाँ आहार लेना अनुचित है।