Book Title: Akaal ki Rekhaein
Author(s): Pawan Jain
Publisher: Garima Creations

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Page 15
________________ अकाल की रेखाएँ | 13 स्वप्नफल को सुन विचारमग्न सम्राट का हृदय वैराग्य से भर गया और मुनिराज के पास जाकर.... हे स्वामी! ये स्वप्न मेरे विवेक व वैराग्य के कारण बन रहे तथास्तु भव्य! हैं, मैं संसार के दुःखों से भयभीत हूँ, अतः मुझे भी दीक्षादान देकर धन्य कीजिए। R एक दिन आहार के लिए जाते समय सेठ जिनदास ने पड़गाहन किया। परन्तु उसी समय मुनिराज ने पालने में| | एक बालक को रोते देखा... ES SM

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